________________ 502 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) इन सभी को एट ए टाइम जानें, वही ज्ञाता-दृष्टा हैं। अंदर जैसा लग रहा है उसे, जो बोला जा रहा है उसे, इन सभी को एट ए टाइम जानते हैं। प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा यह देखता है कि बुद्धि क्या कर रही है? दादाश्री : वह बुद्धि को देखता है, मन क्या कर रहा है उसे देखता है, वाणी क्या है उसे और फिर अंहकार क्या कर रहा है, इन सभी को देखता है। प्रश्नकर्ता : उन्हें ज्ञाता-दृष्टा देखता है न? वह जो देखता है, वह ज्ञाता-दृष्टा है या कुछ और? दादाश्री : हाँ, वही आत्मा है। प्रश्नकर्ता : और जो चंदूभाई को देखती है, वह बुद्धि है? दादाश्री : उसे बुद्धि देखती है और बुद्धि को जो देखता है वह आत्मा है। बुद्धि क्या कर रही है, मन क्या कर रहा है, अहंकार क्या कर रहा है, इन सभी को जो जानता है, वह आत्मा है। आत्मा से आगे परमात्मा पद बाकी रहा। जो शुद्धात्मा हो गया, वह परमात्मा की तरफ गया और परमात्मा हुआ, उसे केवलज्ञान हो जाता है। केवलज्ञान हो गया तो हो गया परमात्मा। पूर्ण हुआ, निर्वाणपद के लायक हो गया। अतः देखने-जानने का उपयोग रखना चाहिए, पूरे दिन। प्रश्नकर्ता : दादा, यानी शुद्धात्मा के बाद में आगे परमात्मा पद है? दादाश्री : शुद्धात्मा ही परमात्मा है लेकिन अभी तक इसमें केवलज्ञान नहीं हुआ है। तो उस शुद्धात्मा को केवलज्ञान हुआ इसका मतलब बन गया परमात्मा! देखनेवाले को भी देखनेवाला प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं न कि जब हम ज्ञान देते हैं तो आत्मा और देह को जुदा कर देते हैं, तो इन दोनों को जुदा रखकर देखनेवाला वह कौन है?