________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला 499 को अर्थात् उन्हें किस तरह से, उसमें क्या-क्या देख सकता है? उसका एक्जेक्ट उदाहरण दीजिए न। दादाश्री : ये किसके गुणधर्म हैं, ऐसा सब जानता है। पुद्गल के गुणधर्म हैं या चेतन के गुणधर्म हैं। फिर अन्य सभी गुणधर्मों को भी जानता है। आकाश के गुणधर्म क्या हैं, उन्हें जानता है। इसके अलावा काल के क्या गुणधर्म हैं, उन्हें जानता है। प्रश्नकर्ता : वे गुणधर्म बताईए न! काल के गुणधर्म क्या है? आकाश के गुणधर्म क्या है? दादाश्री : इन सभी गुणों को जानना, काल के, आकाश के, सभी के गुण, गुणधर्मों को जानना वह तो पैंतालीस आगमों को जानने का फल है। प्रश्नकर्ता : आत्मा की ज्ञानक्रिया और दर्शनक्रिया में यदि ऐसा जानना और देखना है तो फिर अभी तो हम सभी में तो ऐसा नहीं है न, द्रव्य को देखना और जानना? दादाश्री : उसके लिए ऐसी कोई जल्दबाजी करने का मतलब नहीं है न! ऐसा नहीं जानने-देखने की वजह से थोड़े ही खटमल मारने की दवाई पी जाएँ? प्रश्नकर्ता : तो तब तक क्या रहता है? तो फिर ऐसा हुआ कि ज्ञानदर्शन का देखनापना नहीं रहा? दादाश्री : राग-द्वेष नहीं हों, तब जानना कि अपने ज्ञान की प्राप्ति हुई है, अच्छा है। राग-द्वेष हों तो संसार बंधन होता है, ऐसा तय हो गया। राग-द्वेष नहीं हों इसका मतलब अपनी गाड़ी चल रही है, राजधानी एक्सप्रेस। तुझे देखने की ज़रूरत भी नहीं है कि चल रही है या नहीं! जब गाड़ी चलती है, तब तो दो तरह के परिणाम दिखाई देते हैं। कितने ही पेड़ यों जाते हुए दिखाई देते हैं। अपनी गाड़ी ऐसे जा रही हो तब कितने ही पेड़ ऐसे जाते हुए दिखाई देते हैं। कितने ही पेड़ ऐसे लगते