________________ 496 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : क्योंकि वह खुद ज्ञाता-दृष्टा है और इस जगत् में बाकी का सभी कुछ ज्ञेय और दृश्य है। प्रश्नकर्ता : सिर्फ खुद ही ज्ञाता-दृष्टा है। दादाश्री : सिर्फ वह खुद ही ज्ञाता-दृष्टा है, तो और कुछ ढूँढने का रहा ही कहाँ? और दूसरा प्रश्न ठीक था, तो उसे जाननेवाला कौन है? तो वह खुद, खुद को ही जानता है और दोनों को जानता है। प्रश्नकर्ता : स्व-पर प्रकाशक है। दादाश्री : वह प्रश्न वहाँ पर खत्म हो जाता है। एन्ड आया या नहीं आया फिर? ज्ञाता-दृष्टा, बुद्धि से या आत्मा से प्रश्नकर्ता : मैं ज्ञाता-दृष्टा बनकर देखने का प्रयत्न करता हूँ, ऐसा लगता है कि उस समय भी बुद्धि ही देख रही होती है। दादाश्री : यह सही कह रहे हो। बुद्धि ही देखती है। ज्ञाता-दृष्टा तो, जहाँ बुद्धि भी नहीं पहुँच सकती, वहाँ ज्ञाता-दृष्टा की शुरुआत होती है। ____ 'उस ज्ञाता-दृष्टा को देखने का प्रयत्न करता हूँ,' 'प्रयत्न करता हूँ' कहते हैं इसलिए बुद्धि ही है। अब जिस समय बुद्धि का चलण (वर्चस्व, सत्ता, खुद के अनुसार सब को चलाना) रहता है, उस समय बुद्धि देख रही होती है 'ऐसा लगता है' लेकिन जो ऐसा कहता है, वह ज्ञान है। उसे 'आपने' यह 'देखा'। 'देखा' अर्थात् ज्ञाता की तरह से देखा ऐसा नहीं कहा जाएगा लेकिन दृष्टा की तरह से 'देखा।' क्योंकि ज्ञाता-दृष्टा की तरह देखना कब कहा जाएगा? 'ऐसा लग रहा है' तब दृष्टा की तरह से देखा और 'जानने में आता है तब ज्ञाता की तरह जाना। देखनेवाले तो 'आप' ही हो या और कोई साहब आए थे? __ प्रश्नकर्ता : लेकिन जो कहता है कि 'ऐसा लग रहा है' वह बुद्धि ही है, ऐसा लगता है।