________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला 495 ही देख सकता है और मूल चेतन जो है वह विनाशी और अविनाशी दोनों को देख सकता है, दोनों को देखता और जानता है। हमें ऐसा नहीं दिखाई देता कि यह सूर्य-चंद्र गिर पड़े हैं। सूर्य नीचे गिरा हुआ नहीं दिखाई देता, हमें वहीं का वहीं दिखाई देता है लेकिन वह विनाशी ज्ञान के आधार पर है। वह ज्ञान पूरा ही विनाशी है। वह अविनाशी ज्ञान नहीं है! अविनाशी ज्ञान में कोई परिवर्तन नहीं होता! प्रश्नकर्ता : शरीर आँखों से देखता है, आत्मा ज्ञाता-दृष्टा भाव में है, वह भी देखता है, तो दोनों की देखने की दृष्टि में क्या फर्क है? दादाश्री : आत्मा जिसे देखता है, वह रियल दृश्य है और ये आँखें जो देखती हैं, वह रिलेटिव दृश्य है। यह रिलेटिव दृश्य, वह रियल दृश्य। प्रश्नकर्ता : इनमें फर्क क्या है? दिखाव में क्या फर्क है? देखने में फर्क क्या है? दादाश्री : बहुत फर्क है। यह विनाशी दृश्य है। रियल (तत्व) वस्तु रियल को ही देखती है। यह रिलेटिव तो (अवस्थाएँ), विनाशी को देखती है। यह सारा जो इन्द्रिय ज्ञान है, वह ज्ञान कहलाता ही नहीं है न! वह तो भ्रांति की भ्रांति कहलाती है! 'मैं जानता हूँ' और 'मैं करता हूँ' दोनों साथ में। हमें ज्ञाता और दृष्टा दोनों को ढूंढ निकालना चाहिए। जो ज्ञाता-दृष्टा है, वह अविनाशी है। दृश्य और ज्ञेय दोनों ही विनाशी हैं। सिर्फ दृश्य ही नहीं, ज्ञेय भी। प्रश्नकर्ता : इन सभी को जाननेवाला आत्मा है, तो उसे जाननेवाला कौन है? दादाश्री : उस जाननेवाले को जाननेवाला कोई नहीं है। प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है, हो ही नहीं सकता। दादाश्री : जाननेवाले को जाननेवाला होता है। प्रश्नकर्ता : क्योंकि वह स्वयं है न! वह निरंतर है, परमानेन्ट है।