________________ [7] देखनेवाला-जाननेवाला और उसे भी जाननेवाला ज्ञायकभाव : मिश्रभाव देखो न, सोते सोते पैर दबवाता हूँ और उसे भी जानता हूँ। क्या हो रहा है, उसे भी जानता हूँ। प्रश्नकर्ता : अभी कहा न कि ये पैर दबाने को कहते हैं, उसे भी जानते हैं, ये पैर दब रहे हैं उसे भी जानते हैं, फिर ये वाणी बोल रहे हैं उसे भी जानते रहते हैं तो यह सब एट ए टाइम किस तरह हो सकता है? दादाश्री : इतनी अनंत शक्तियाँ हैं। ओहोहो! चारों तरफ देख सकता है ! ये आँखें तो आगे ही देख सकती हैं, जबकि आत्मा तो दसों दिशाओं में देख सकता है, सभी दिशाएँ, सभी कोने, सभी डिग्रियों में क्या वह नहीं कर सकता? प्रश्नकर्ता : लेकिन एट ए टाइम तो एक ही रहता है न? दादाश्री : एक ही रहता है लेकिन वह सब कह देता है लेकिन कहने के लिए अलग-अलग शब्दों की ज़रूरत पड़ती है, इसलिए उतना समय चाहिए। एट ए टाइम सभी शब्द एक साथ इकट्ठे नहीं कहे जा सकते। अतः स्याद्वाद की ज़रूरत पड़ती है। प्रश्नकर्ता : देखना अर्थात् आँखों से देखने की बात नहीं है उसमें। वह अंदर का दर्शन है, तो हम जो जानते हैं वह आत्मा को ही पता चलता है न, लेकिन वह तो हमें ज्ञान लेने के बाद पता चलता है। अब ज्ञान लेने से पहले भी सभी को पता चल सकता है?