________________ [6] एक पुद्गल को देखना 483 जहाँ सम्यक्त्व नहीं है वहाँ पर दो कार्य हो रहे हैं, वे पूरण भी करते हैं और गलन भी करते हैं। और यह पूरण किए हुए का सिर्फ गलन ही करता है। अतः कोई जैन का पुद्गल हो तो जैन का गलन करता रहता है, वैष्णव का हो तो वैष्णव का गलन करता है, शिववाला शिव का करता है। मोची हो तो वह मोची का, सुथार हो तो सुथार का, लुहार हो तो लुहार का। लोग बुद्धि से देखते हैं, अलग-अलग तरह की और खुद ही वापस खुद की फिल्म बिगाड़ते हैं। उस बेचारे ने जो भरा है वही खाली कर रहा है, उसमें आप क्यों ऐसे बिगाड़ रहे हो? अब इसमें किस तरह से समझेंगे लोग? प्रश्नकर्ता : जब ज्ञानीपुरुष की प्रत्यक्षता होती है तो इस चीज़ के बारे में काफी पता चल जाता है। ये पहेलियाँ आसानी से सुलझ जाती हैं। दादाश्री : हाँ, सुलझ जाती हैं। नहीं तो सुलझें ही नहीं न! शास्त्रों से हल आता ही नहीं है न! निबेड़ा ही नहीं आता न! इसीलिए कृपालुदेव ने लिखा है न, 'शास्त्रों से निबेड़ा नहीं है।' एक पुद्गल को देखें तो फिर कोई झंझट ही नहीं। नहीं तो बुद्धि अलग-अलग दिखाती है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं?' अरे भाई, समकिती जीव हैं। उनका जो सारा माल निकल रहा है वह तो उसने जो भरा था, उसका वही माल खाली हो रहा है। उसमें तू क्यों परेशान हो रहा है? जैन पुद्गल और वैष्णव पुद्गल का मतलब क्या है कि उन्होंने जो माल भरा था, उसी को खाली कर रहे हैं। प्रश्नकर्ता : फिर आसानी से समाधान रहता है। दादाश्री : समाधान ही रहेगा। यह ज्ञान ही समाधानी है, सर्व समाधानी है। हर समय पर, हर काल में और हर जगह पर समाधान रहे ऐसा यह ज्ञान है, अक्रम विज्ञान। कोई गाली दे जाए तो भी समाधान रहता है। चंदूभाई किसी को गाली दे तो भी समाधान रहता है कि चंदूभाई का भरा हुआ माल निकल रहा है। उसी तरह सामनेवाले का भी भरा हुआ माल निकल रहा है।