________________ [6] एक पुद्गल को देखना 481 स्वभाव है। ‘महावीर' हो या फिर कोई भी हो, शरीर का स्वभाव है। सिर्फ अहंकारी लोग ही जो चाहे सो कर सकते हैं। खटमल तो क्या, लेकिन अगर उन्हें जला दें तो भी वे हिलें नहीं क्योंकि पूरी आत्मशक्ति उसी में रहती है। 'हाँ, जो होना हो वह हो जाए, लेकिन हिलना तो है ही नहीं, ऐसा तय किया होता है। लेकिन देखो, आत्मशक्ति कितनी! और यह तो सहजभावी, केवलज्ञानी और सभी ज्ञानी सहजभाव से रोते भी हैं, आँखों से पानी निकल जाता है, चीख भी पड़ते हैं। जब खटमल काटें न, तो करवट बदलते हैं। यों इधर-उधर करवट बदलते हैं। सभी कुछ देखते हैं। पहले कर्म खपाने में गया, फिर देखने में गया, निरंतर देखा। एक ही पुद्गल में दृष्टि रखी। सभी पुद्गल का जो है, वह एक ही पुद्गल में। खुद के पुद्गल का ही देखना है जो कि विलय हो जाता है! __भगवान महावीर क्या करते थे, उन्हें दिखाई देता था कि 'ये महावीर कैसे दिख रहे हैं?' भगवान महावीर, 'महावीर' को ही देखते रहते थे ! उनके खुद के एक पुद्गल के अलावा और किसी पुद्गल को देखते ही नहीं थे। यह पुद्गल अर्थात् पूरण-गलन, जो हो रहा है। तो यह पूरण हो जाता है, गलन हो जाता है। पूरणपूरी (व्यंजन) खाया तो वह पूरण हो गया, जलेबी खाई वह पूरण हो गई। यह क्या गलन हुआ, ऐसा सबकुछ देखते ही रहते थे निरंतर। अंदर श्वास गया, बांद्रा (मुंबई का उपनगर) की खाड़ी आई तब, कैसा श्वास(गंध) अंदर गया उसे भी जानते-देखते रहते हैं। बांद्रा की खाड़ी आए। तब कैसा श्वास अंदर जाता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, तब दुर्गंध आती है.... दादाश्री : लोग नाक दबाएँ, तब भी घुस जाएगा। एक ही पुद्गल के रूप में देखते थे। एक पुद्गल अर्थात् द्वंद्व नहीं रखते कि यह बुरा है, यह अच्छा है! यह वाणी खराब निकली, यह अच्छी निकली, ऐसा सब नहीं। एक ही! यह सब पुद्गल ही है। प्रश्नकर्ता : फिर तो शुद्धात्मा की दृष्टि से अच्छा-बुरा रहता ही नहीं।