________________ [6] एक पुद्गल को देखना 477 प्रश्नकर्ता : यह देखना, तो वह किस तरह से? दादाश्री : यह क्या कर रहा है ऐसा नहीं दिखता भला? ये चंदूभाई पूरे दिन क्या करते हैं, वह मुझे दिखाई देता है। वैसा ही 'आपको' भी दिखना चाहिए। बस, इतना ही। वैसा ही, फिर नई डिज़ाइन का नहीं। कोई नई डिज़ाइन या कुछ भी नहीं कि उसमें अंदर आर्किटेकचर को लाने की ज़रूरत नहीं है। जैसा मुझे दिखाई देता है वैसा ही आपको दिखना चाहिए। प्रश्नकर्ता : आपने एक बार बात की भी कि चंदूभाई खाना खा रहे हों तो जैसा दर्पण में दिखाई देता है, उसी तरह से दिखाई देना चाहिए। दादाश्री : हाँ, यानी कि वैसा ही दिखाई देना चाहिए। वह दर्पण को दिखे या मुझे दिखे, सब एक समान ही है न! वैसा ही दिखाई देना चाहिए। क्या वह मुश्किल है? प्रश्नकर्ता : दादा, वह आपके लिए आसान है लेकिन हमारे लिए तो मुश्किल ही है न। दादाश्री : नहीं। लेकिन वह धीरे-धीरे फिट कर लेना है, फिर अपने आप ही फिट हो जाएगा। उस तरफ दृष्टि नहीं जाएगी तो फिर वह फिट किस तरह से होगा? महावीर भगवान तो एक ही कार्य करते थे कि महावीर क्या कर रहे हैं उसे देखते रहते थे, बस। बाकी किसी झंझट में थे ही नहीं। महावीर जब जग रहे होते तब उन्हें जागृत अवस्था में देखते थे, मैं देख रहा हूँ उस तरह से। मैं देख रहा होऊँ न उस तरह से आपको' देखना है। कोई जागृत और समझदार व्यक्ति देखता ही रहता है, अपना सबकुछ निरीक्षण करता रहता है। उस प्रकार से 'आपको' निरीक्षण करना है, इतना ही है न! दसरों का करने की शक्ति तो सभी लोगों में हैं लेकिन यह तो खुद का निरीक्षण करने की शक्ति ! क्योंकि अनादि से इस चीज़ का अभ्यास नहीं है न, इसलिए वहाँ पर कच्चा पड़ जाता है। दर्पण में देखकर आसान कर देते हैं। ऐसा करते-करते प्रेक्टिस हो जाएगी क्योंकि 'अनादि काल से इस तरह से देखा ही नहीं है न क्योंकि