________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 473 प्रश्नकर्ता : अर्थात् 'माइ' को निकाल दें, तो चीज़ भले वहीं की वहीं रही! दादाश्री : हाँ, बस! अंत में इस देह को सहज करना है। जिसने वैसा चित्रण अधिक किया हुआ होता है न, उसने ज़्यादा असहज किया हुआ है। इसीलिए उसे सहज होने में देर लगती है। हमने चित्रण नहीं किया था, इसलिए झटपट हल। सहज को देखने से हुआ जाता है सहज एक ही चीज़ कही जाती है कि 'भाई, आत्मा तो सहज है। तू अब इस पुद्गल को सहज कर।' अब 'सहज किस तरह से हो सकते हैं?' सहज को देखने से सहज हो जाते हैं। ज्ञानी को देखने से, उनकी सहज क्रियाओं को देखने से सहज हो जाते हैं। अगर कोई पूछे कि 'कॉलेज में नहीं सीख सकते?' तो कॉलेज में नहीं सीख पाओगे यह। क्योंकि उन प्रोफेसरों को भान ही नहीं है, तो फिर कॉलेज में किस प्रकार सीख पाओगे? और यह ज्ञान शब्द रूप नहीं है, यह तो सहज क्रिया है। जैसे लुटेरों के पास किसी बच्चे को छोड़ दिया जाए तो वह छः महीने में तो फर्स्टक्लास लुटेरा बन जाएगा और अगर बीस साल तक लुटेरों के कॉलेज में पढ़ने जाए तो भी नहीं बन पाएगा। उसी प्रकार अगर ज्ञानीपुरुष के पास रहे, तो अपने आप ही सहजता उत्पन्न हो ही जाती है। अनादि काल से अत्यंत चंचलता उत्पन्न हो गई है, वह चंचलता अब धीरे, धीरे, धीरे शांत होते-होते सहजता उत्पन्न हो जाती है। मुझे कोई गालियाँ दे रहा हो, उस समय मेरी सहजता देखकर आपको मन में ऐसा होगा कि 'ओहोहो, ऐसा!' तो आप तुरंत ही वह सीख जाओगे! देखा कि सीख जाते हैं। फिर कोई आपको गालियाँ दे तो भी सहजता रखना आ जाएगा। नहीं तो लाख जन्मों तक भी सीखा नहीं जा सकता। ज्ञानीपुरुष के पास रहने से सभी गुण अपने आप ही प्रकट होते जाते हैं, सहज रूप से प्रकट होते हैं ! अक्रम विज्ञान में कहा जाता है, ऐसा