________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 471 प्रश्नकर्ता : योजनापूर्वक अर्थात् खुद को करना पड़ता है, ऐसा? खुद को योजनापूर्वक सेट करना पड़ता है? ऐसे सब निर्णय लेने पड़ते हैं? दादाश्री : सेट नहीं करना है, वह तो सेट हो ही चुका होता है सभी कुछ। वह तो हम ये बातें कर रहे हैं। इसमें से भाव जितना कम होगा तो रास्ते पर आ जाएगा तब सहज होगा, वर्ना सहज किस तरह से होगा! अपने मन से माना हुआ नहीं चलेगा। मन से माना हुआ अगर एक भी चला तो वह चलेगा क्या? प्रश्नकर्ता : अगर शादी नहीं करनी है तो उस दिशा का पूरा जंजाल ही कम होता जाएगा.... दादाश्री : जितना जंजाल कम उतना सहज होता जाएगा और उतना ही हेल्पफुल बनेगा। जंजाल आगे बढ़ाएँ तो सहजता कम होती जाती है। हमने जो ज्ञान दिया है, तब से थोड़ा सहज हुआ है, कुछ अंशों तक। और अगर कोई कहे, 'चलो न, अब दादा ने फाइल कहा है तो जितनी भी करें तो उसमें हर्ज ही क्या है ! उसे अगर उल्टा करना हो तो क्या हम मना कर सकते हैं? प्रश्नकर्ता : बाहर की चीजें कम होने के लिए अंदर की जागृति कैसी होनी चाहिए? दादाश्री : अंदर की जागृति ऐसी होनी चाहिए कि चीजें उसे दुःखदाई लगती रहें। प्रश्नकर्ता : अब तो आपने दिखा दिया है कि आवश्यक चीज़ों के अलावा बाकी सभी चीजें जितनी छोड़ी जा सकें उतनी छोड़ ही देनी चाहिए। ऐसा ही हुआ न? दादाश्री : हाँ, सभी नहीं होनी चाहिए। और अगर चीज़ों ने पकड़ा हुआ हो तो धीरे-धीरे किस तरह से उन्हें छोड़ दें, उसी पैरवी में रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : तो उसे छोड़ देना किसमें आता है। ये चीजें नहीं होनी चाहिए कहा न?