________________ 470 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : भूख लगे, तब क्या करता है? दादाश्री : कुछ भी नहीं। प्रश्नकर्ता : उसके उदय भी ऐसे होते हैं न कि भूख लगे तब चीज़ मिल जाती है? दादाश्री : वह तो नियम ही ऐसा है कि मिल ही जाती है। सबकुछ मिल जाता है, सहज। प्रश्नकर्ता : तब तो फिर भोजन आवश्यक में ही आता है। कपड़ेवपड़े नहीं न? आवश्यक में कपड़े नहीं आते न? दादाश्री : कुछ नहीं होता, आवश्यक अर्थात् कपड़े वगैरह कुछ नहीं आते उसमें, सिर्फ देह की ज़रूरतें ही। सहज दशा तक पहुँचने की पैरवी में प्रश्नकर्ता : अभी इन संयोगों में हैं और ये सारी आवश्यकता से बहुत अधिक चीजें हैं अभी और यहाँ से आवश्यक(वाली) स्थिति तक पहुँचने का संधिस्थान क्या है? रास्ता क्या है? दादाश्री : यह कम होगा वैसे-वैसे। जितना बढ़ाएँगे उतनी देर लगेगी। कम करेंगे तो जल्दी हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : कम करने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : क्यों? तुझे शादी नहीं करनी है तो क्या कम नहीं हो जाएगा? और जिसे शादी करनी हो उसे? प्रश्नकर्ता : बढ़ जाएगा। दादाश्री : हाँ, तो बस। कोई निश्चय तो होना चाहिए न! सबकुछ योजनापूर्वक है यों ही क्या गप है? मोक्ष में जाना है तो योजनापूर्वक होना चाहिए न?