________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 469 पर से आगे की दशाएँ हम प्राप्त करते जाएँ तो वैसी दशा उत्पन्न हो जाएगी लेकिन पहले से ही दुकान बड़ी करते गए हों तो? अंतिम दशा देर से आएगी। प्रश्नकर्ता : अगर अंतिम दशा की पिक्चर सामने हो, तभी वहाँ तक पहुँचा जा सकेगा न? दादाश्री : तभी जा सकेंगे। अंतिम दशा की यह एक पिक्चर बता रहा हूँ। सिर्फ आवश्यक ही रहे। उसमें थाली-लोटा वगैरह न हो और आवश्यक में भी पेशाब घर आने की राह न देखे, वह सहज है, इसका मतलब वहीं पर, गाय-भैसों की तरह। उन्हें शरम वगैरह कुछ नहीं होती। गाय-भैसों को शरम आती है? क्यों अगर गाय शादी के मंडप में खड़ी हो तब भी? उस घड़ी भी विवेक नहीं रखती? प्रश्नकर्ता : बिल्कुल भी नहीं, किसी की शरम नहीं रखती। सभी के कपड़े बिगाड़ देती है। तो ऐसी सहज स्थिति के समय खुद का उपयोग कैसा होता है? दादाश्री : बिल्कुल कम्पलीट! देह सहज तो आत्मा बिल्कुल कम्पलीट!! प्रश्नकर्ता : तो उसकी बाहर के प्रति दृष्टि ही नहीं होती? दादाश्री : वह सब कम्पलीट होता है, बाहर वह सब दिखता रहता है। दृष्टि में ही आ गया सबकुछ और वही सहज आत्म स्वरूप है, वह परम गुरु है। जिनका आत्मा ऐसा सहज रहे, वही परम गुरु! प्रश्नकर्ता : तो फिर यह अभी जो कहा न कि पेशाब घर ढूँढते हैं क्योंकि शरम आती है, तो वह किसे? वह क्या चीज़ है? दादाश्री : विवेक रहा है न! वह सहजता नहीं रहने देता। सहजता में तो विवेक वगैरह कुछ भी नहीं होता। सहजता में तो वह कब खाता है कि जब सामनेवाला दे, तभी खाता है। नहीं तो माँगता भी नहीं, उसके बारे में सोचता भी नहीं, कुछ भी नहीं। भूख लगे, तब भी नहीं।