________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 465 प्रश्नकर्ता : लेकिन जब तक संसार व्यवहार है, तब तक वह बीच में खड़ा रहेगा न? दादाश्री : अरे, व्यवहार का तो निकाल कर देता है जल्दी से / प्लेन की टिकिट ली हो और एकदम से बरसात आ जाए, तो क्या वह निकाल किए बगैर बैठा रहेगा? प्रश्नकर्ता : वह तो, कोई रास्ता निकालकर पहुँच जाएगा। सहज किस तरह से रहें? प्रश्नकर्ता : देह को सहज करने के लिए कोई साधन तो चाहिए न? दादाश्री : हाँ, साधन के बिना तो सहज किस तरह हो पाएँगे? और फिर वापस ज्ञानीपुरुष के दिए हुए साधन होने चाहिए। कैसे? प्रश्नकर्ता : कोई भी साधन हो तो नहीं चलेगा? किसी का भी दिया हुआ नहीं चलेगा? दादाश्री : सहज मार्ग प्राप्त करना है, जिसे अज्ञान दशा है, भ्रांति की दशा है, उसमें भी सहज रूप से बरतने की शुरुआत करे, तब सहज मार्ग प्राप्त होगा। सुबह अगर वह चाय रख जाए तो पीना और न रख जाए तो कोई बात नहीं। खाने का वह दे दे तो खाना, नहीं तो माँगकर नहीं खाना चाहिए। वहाँ पर ऐसे-ऐसे करके भी नहीं खाना चाहिए। वैसा सहज योग बहुत कठिन है इस काल में तो। सतयुग में सहज योग अच्छा था। अभी तो लोग बिना माँगे देते ही नहीं हैं न! सहज योगवाला मारा जाता है बेचारा! यह मुश्किल चीज़ है। कोई कहे 'यहाँ पर सो जाओ' तो सो जाना है। माँगने का समय नहीं आता। सहज प्राप्त संयोगों में ही रहना पड़े तो सहज मार्ग है। बाकी दूसरे सभी तो लोगों ने कल्पित सहज मार्ग निकाले हैं। सहज मार्ग तो है ही नहीं। वह कोई लड्डू खाने के खेल नहीं है! सभी तरह की कल्पित कल्पनाएँ करते रहे हैं। एक महीना अगर सहज रहें न तो फिर और कोई सहज योग करने