________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 463 यदि सहजता टूट गई तो कर्म हुआ। अर्थात् पूरा जगत् कर्म ही बाँध रहा है। चंचलता शुभ भाव में हो तो अच्छे कर्म बाँध रहा है। अशुभ भाव में हो तो खराब कर्म बाँध रहा है। अतः फिर से भोगना पड़ेगा सबकुछ। फिर से बीज पड़ेंगे। फिर से चंचलता उत्पन्न होगी। जल्दी है? तो बन अपरिग्रही प्रश्नकर्ता : लक्ष (जागृति) तो दादा उस अंतिम दशा का ही है कि यह दशा पूरी करने में जो-जो कमियाँ हैं... जब जानते हैं कि अंतिम दशा यह है और ऐसा होना चाहिए, तो अब उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : वह तो जब यह सारा व्यवहार छूटेगा तब तेरा काम होगा। प्रश्नकर्ता : अब अप्रयत्न दशा तक पहुँचने के लिए उस फाइल में से निकलूँ कैसे? दादाश्री : उसका तुझे पता चलता है न? वह किस तरह से? इस व्यवहार ने तुझे नहीं पकड़ा है, तूने व्यवहार को पकड़ा है। हम तो सावधान करते हैं कि 'भाई, ये सारी नुकसानदायक चीजें हैं।' जो आपको चाहिए ये चीजें उसमें बाधक हैं इसलिए चेतावनी देते हैं। फिर अगर उन्हें अच्छी लगे तो करते ही रहते हैं, उसमें मुझे मना करने का है ही कहाँ? प्रश्नकर्ता : कभी न कभी तो छूटना ही पड़ेगा न! और कोई चारा थोड़े ही है? दादाश्री : हाँ लेकिन इसीलिए तो फिर ज्ञान को जानना है। जिसे जल्दी हो उसे अपरिग्रही हो जाना चाहिए। हाँ, नहीं तो पकोड़े खाते-खाते जाना चाहिए। दोनों में से एक तय हो जाना चाहिए। पकोड़ियाँ खाते-खाते नहीं जाना है? आवश्यक फर्ज़ रूपी व्यवहार को शुद्ध व्यवहार कहा है भगवान ने। संडास जाना पड़ता है, पेशाब के लिए जाना पड़ता है, खाना पड़ता है, पीना पड़ता है।