________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 461 अक्रम विज्ञान से आप हो गए हो! नहीं तो यों वकालत करते-करते क्या कोई सहज हुआ जाता होगा? वकील कहीं सहज होते होंगे? और वापस केस लेकर बैठते हैं न? लेकिन देखो सहज हो पाए न! वह भी आश्चर्य है न! यह सब से बड़ा चमत्कार कहलाता है। फिर भी हम कहते हैं कि चमत्कार जैसी कोई चीज़ नहीं है। समझ में नहीं आने की वजह से लोग कहते हैं कि चमत्कार है। बाकी साइन्टिफिक समकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं ये सारे! अभी तो, आपको जो यह विज्ञान दिया है, वह आपको अब निरंतर सहज ही कर रहा है। और अगर सहज हो गए तो मेरे जैसे हो जाओगे। मेरे जैसे हो गए तो ब्रह्मांड के ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) कहलाओगे। दादा भगवान को ब्रह्मांड का ऊपरी कहते हैं। उसका क्या कारण है कि इस देह के मलिक नहीं हैं। तो फिर इस देह का मालिक कौन है? तो कहते हैं कि यह पब्लिक ट्रस्ट है। प्रश्नकर्ता : दादा, आपने सभी को थोड़ा-थोड़ा, हर एक की शक्ति के अनुसार आत्मा का एश्वर्य दिखा दिया है। दादाश्री : कितना बड़ा ऐश्वर्य दिखा दिया ! देखो न, चेहरे पर कैसा आनंद है, वर्ना ऐसा रहता जैसे एरंडी का तेल चुपड़ा हुआ हो। सहज हो चुके व्यक्ति का एक वाक्य भी बहुत हितकारी होता है लोगों के लिए! सहज का एक ही वाक्य हो तो भी बहुत हितकारी है। कोई सहज हुआ ही नहीं है न! सहजता का यह उपाय अपने यहाँ पर है। अब जितना समझदार होता जाएगा, सीधा होता जाएगा उतना। सीधा हो गया कि सहज हो गया। हम अमरीका गए थे, तब गठरी की तरह गए थे और गठरी की तरह वापस आ गए। अमरीका में सभी जगह गए थे, वहाँ पर भी इसी तरह और सब जगह इसी तरह। हमारा कुछ भी नहीं। 'विचरे उदय प्रयोग! अपूर्व वाणी परम श्रुत!' (विचरते हैं उदय अनुसार, अपूर्व वाणी परम श्रुत) इस तरह से।