________________ 458 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) हैं और वे फोटो सुंदर भी नहीं दिखते। सहज फोटो सुंदर दिखता है। कौन सा अच्छा दिखता है? सहज। जबकि असहज में अंदर अहंकार फैला हुआ होता है। फोटो खिंचते समय अगर आप ऐसा कहो कि 'आप हाथ जोडिए' तो हम हाथ जोड़ लेते हैं, बस। और मुझे क्या है? क्योंकि हमें मन में ऐसा नहीं होता है कि मेरा फोटो ले रहा है, नहीं तो विकृत हो जाएँगे। हम सहज में ही रहते हैं। बाहर चाहे कितने भी फोटो लेने आएँ तो फोटोवाले भी समझ जाते हैं कि दादा सहज में ही है। तुरंत ही बटन दबा देते हैं। जब तक हमारी साहजिकता रहती है तब तक हमें प्रतिक्रमण नहीं करने होते। साहजिकता में प्रतिक्रमण आपको भी नहीं करने पड़ेंगे। साहजिकता में फर्क आया कि प्रतिक्रमण। हमारी साहजिकता ही है, जैसे देखो, जब देखो तब हम उसी स्वभाव में दिखाई देते हैं। साहजिकता में फर्क नहीं आता। व्यवस्थित समझने से प्रकट होती है सहजता आप आत्मा हो ही गए हो, फिर अब रहा क्या? प्रश्नकर्ता : अर्थात् आत्मा शुद्ध हो गया। यह तो प्रश्न हुआ कि 'इनकी दशा कैसी होती है?' इसलिए कहा कि पूरी अप्रयत्न दशा उत्पन्न हो जाती है। खुद के चप्पल पहनने तक का प्रयत्न नहीं रहता। दादाश्री : अभी भी अप्रयत्न दशा ही है। प्रयत्न तो, जब अहंकार हो तब कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आपने कहा था कि 'रेल्वे स्टेशन पर गए हों, गाड़ी में जाना हो, तब स्टेशन पर जाकर बार-बार ऐसे झाँककर नहीं देखते कि गाड़ी आई है या नहीं?' दादाश्री : ऐसा देखें तो उसमें हर्ज क्या है? फिर खुद को पता चलता है न कि यह भूल हो गई ज़रा। अतः ऐसा भाव रखना है कि सहज होना है। हमें दृष्टि कैसी रखनी है? सहज। जिस समय जो होता है वह देखना है। और