________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 453 करनेवाला निकल जाता है। प्रयास करनेवाले की जो गैरहाज़िरी है, वह सहज दशा है और प्रयास करनेवाले की हाज़िरी वह असहज है। यानी कि उस प्रयास करनेवाले के चले जाने पर सहज हो जाता है। फिर जो भी क्रिया हो रही हो तो उस क्रिया में कोई आपत्ति नहीं है। प्रयास करनेवाले को लेकर आपत्ति है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह प्रयास करने की गाँठ ही पड़ चुकी है उसे। दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : क्या वास्तव में किसी भी प्रकिया में प्रयास की ज़रूरत है ही नहीं? दादाश्री : प्रयास की ज़रूरत है, लेकिन उसे करनेवाला नहीं होना चाहिए। प्रयास की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कहेंगे तो फिर लोग काम करना छोड़ देंगे सारा। छोड़ देने का भाव करेंगे। अतः प्रयास की ज़रूरत है। प्रश्नकर्ता : लेकिन हकीकत क्या है अंदर की, एक्ज़ेक्टनेस? दादाश्री : प्रयास करनेवाला ही चला जाए तो बस, हो गया। प्रश्नकर्ता : यह जो मन-वचन-काया की प्रकियाएँ होती हैं, उस समय प्रयास करनेवाला वास्तव में होता है क्या? दादाश्री : प्रयास करनेवाला है इसीलिए यह प्रयास कहलाता है। वह सहज नहीं कहलाता। प्रयास करनेवाला चला जाए तो वही की वही चीज़ फिर सहज कहलाती है। प्रश्नकर्ता : तो फिर प्रयास करनेवाला ये मन-वचन-काया की जो प्रकिया करता है, तब जो होता है और प्रयास करनेवाला जब चला जाता है तब जो होता है, वास्तव में तो दोनों ही मिकेनिकल ही था न? दादाश्री : होने में, चीज़ वही की वही होती है, उसके होने में चेन्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् अगर इसने यह प्रयास नहीं किया होता तो भी वैसा ही होता?