________________ 452 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) और रिलेटिव में तो प्रयत्न ही रहते हैं जबकि रियल तो सहज होता है। सहज देखना हो तो मेरे पास मिलेगा और वहवाला रिलेटिव होता है। कल्पना से मार-मारकर सेट करना पड़ता है, कल्चर्ड। लोगों को कल्चर्ड पसंद है, इसलिए कह रहा हूँ। प्रश्नकर्ता : यह जो दर्शन शक्ति है, वह दर्शन प्राप्ति के प्रयास करने से आवृत हो जाती है। दादाश्री : प्रयास करने से सबकुछ उल्टा होता है। वह अप्रयास होना चाहिए, सहज होना चाहिए। प्रयास हुआ तो सहज नहीं रहा। सहजता चली गई। प्रश्नकर्ता : अब सभी जगह कुछ न कुछ प्रयास बताए गए हैं। अब उससे कहीं दर्शन शक्ति डेवेलप नहीं होती, सहजता प्राप्त नही होती। दादाश्री : प्राप्त नहीं हो सकती। सहज शक्ति अलग चीज़ है। वह ऐसी चीज़ नहीं है कि प्रयत्न से प्राप्त हो जाए। प्रयत्न से और अधिक दूर जाती है। सहज शक्ति निर्विकल्प है। सहजता का मतलब ही है, अप्रयत्न दशा प्रश्नकर्ता : चरणविधि में है न कि 'मन-वचन-काया की आपके जैसी सहजता मुझे प्राप्त हो,' तो वह सहजता कैसी है? अर्थात् सहजता की परिभाषा क्या है? दादाश्री : सहजता का मतलब मोटी भाषा में कहें तो अप्रयास दशा। कोई भी प्रयास नहीं। आत्मा से भी कोई प्रयास नहीं और देह से भी कोई प्रयास नहीं। मानसिक प्रयास भी नहीं और बुद्धि का भी प्रयास नहीं। प्रयास नहीं, अप्रयास दशा। प्रश्नकर्ता : उसमें फिर मन-वचन-काया का तालमेल तो होता है न? दादाश्री : अनायस दशा हो गई, बस। प्रयास नहीं। उसमें से प्रयास करनेवाला निकल जाता है। मन-वचन-काया काम करनेवाले हैं लेकिन प्रयास