________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 51 अतः इंसान को विवेक से समझना चाहिए। ‘जल्दी उठना चाहिए।' पॉसिबल हो तो चार-साड़े चार बजे। फिर इतना समझने के बाद जो हुआ वह सही है। निश्चय रखना चाहिए, फिर भी जो हुआ वह सही है। फिर बात को ऐसे पकड़कर नहीं रखना है या ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करनी है / वीतरागों का मार्ग ज़ोर ज़बरदस्ती का नहीं है। या तो सहज या फिर ज़ोर ज़बरदस्ती, दो ही होते हैं। तो ऐसे ज़ोर ज़बरदस्ती करते हुए देखा है मैंने लोगों को। आपने नहीं देखे होंगे ज़ोर ज़बरदस्ती करनेवाले? या तो ज़ोर ज़बरदस्ती करता है या फिर सहज रहता है। आपको ये जो मिले हैं, वे सभी ज़ोर ज़बरदस्ती हैं। रहने दो न भाई! मोक्ष के लिए क्या ऐसा होता होगा? प्रश्नकर्ता : बात को पकड़कर रखे तो हम जान जाते हैं कि यह ज़ोर ज़बरदस्ती कर रहा है। दादाश्री : हाँ। आत्मा तो न जाने कहाँ रह गया, और बिना दूल्हे की बरात देखो तो सही! दूल्हा तो अभी तक आया नहीं और बारात खाना खाने बैठी है! ज्ञान उसे कहते हैं कि जो लोगों को साहजिक बनाए। शास्त्रों में तो ऐसा करो, वैसा करो और फलाना करो और तप करो और जप करो, और, फलाना करो, ऐसा सब होता है। करने की ही कथा कही गई है। सहज होने का रास्ता किसी ने दिखाया ही नहीं है। यहाँ पर बैठे तो सहज हो जाएँगे या नहीं हो जाएँगे? तो अब सहज होना है। सहज हुआ कि परमात्मा हो गया। सहजात्म स्वरूप परमात्मा कहलाते हैं। इसलिए सहज ही होना है। प्रयत्न से जाए दूर, सहजता प्रश्नकर्ता : अब इस चित्त प्रसन्नता का विकास करने के लिए ये सब जो प्रयत्न करते हैं, वह चित्त प्रसन्नता साहजिक नहीं कहलाती न? दादाश्री : नहीं, वे जो प्रयत्न करते हैं, न वह रिलेटिव कहलाता है।