________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 449 वापस वैसे उड़ जाता है। खुद का कुछ भी नहीं। पोतापना है ही नहीं! प्रश्नकर्ता : तो फिर संक्षेप में क्या ऐसा है कि जो कर्म अहंकार शून्य हैं, वही सहज हैं? दादाश्री : हाँ, वही सहज हैं। प्रश्नकर्ता : तो सहज वर्तन क्या है? दादाश्री : ऐसा है न, सहज वर्तन अर्थात् वह जो भ्रांति का भाग था, वह चला जाए तो उसे सहज कहते हैं ! भ्रांति का भाग चला गया। तो बचा क्या? सहज। प्रश्नकर्ता : 'सहज' के बाद फिर कर्म नहीं बंधते न? दादाश्री : फिर कर्म बाँधेगा ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : तो फिर उससे वस्तु प्योर हो गई न? दादाश्री : हाँ, प्योर! और प्योर होने के बाद कारण-कार्य नहीं रहा! प्रश्नकर्ता : ऐसा ही इस सहजता में होता है न? दादाश्री : हाँ, बस। उसमें कारण-कार्य नहीं रहा और सहजता चली गई कि कारण-कार्य उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसा है न, इस ज्ञान के बाद चार्ज में आप भी सहज हो और डिस्चार्ज में असहज हो क्योंकि पिछले जो कॉज़ेज़ हो चुके हैं न, उनके ये परिणाम बाकी हैं, उनमें असहज हो जाते हो। प्रश्नकर्ता : अर्थात् इफेक्ट में असहज और कॉज़ेज़ में सहज। दादाश्री : हाँ, बस। प्रश्नकर्ता : लेकिन कॉज़ेज़ में सभी लोग सहज रहते हैं? दादाश्री : नहीं, सिर्फ अपने ज्ञान लिए हुए महात्मा ही कॉज़ेज़ में सहज हैं।