________________ 448 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) अब यह सारी बातें लौकिक ज्ञान से बहुत दूर हैं इसलिए जल्दी समझ में नहीं आ सकती न, फिट नहीं हो सकती यह बात! अलौकिक बात है यह। साहजिक अर्थात् बिना मेहनत के जिसमें पुरुषार्थ न हो, वह है साहजिक। चोर चोरी करता है, तो वह साहजिक कहलाता है। प्रश्नकर्ता : चोरी करते समय चोर के अंदर जो पुरुषार्थ चल रहा होता है तो फिर वह परिणाम साहजिक नहीं कहलाएगा न? दादाश्री : नहीं, फिर भी वह साहजिक ही कहलाएगा। चोर चोरी छोड़ दे, तो वह पुरुषार्थ कहलाएगा। छींक खाना, साहजिक नहीं है। वह कुदरती क्रिया है। प्रश्नकर्ता : वह समझाइए न ज़रा। दादाश्री : साहजिक अर्थात् मन के कहे अनुसार चलना। वह साहजिक है। खुद को कुछ सोचना नहीं है, खुद को कुछ मेहनत नहीं करनी है, पुरुषार्थ नहीं / गाड़ी जहाँ जाए, वहाँ जाने देना, उसे साहजिक कहते हैं। साहजिक अर्थात् कोई मेहनत नहीं है, अपने आप ही होता रहता है। प्रश्नकर्ता : मन के कहे अनुसार चले तो साहजिक है इसलिए अजागृत अवस्था में, अज्ञा दशा में साहजिकता होती है। उस प्रकार की साहजिकता? दादाश्री : हाँ, वह साहजिक कहलाता है। साहजिक में पुरुषार्थी नहीं होते, लट्टू ही होते हैं और ज्ञान होने के बाद का जो साहजिक है, वह परमात्मा कहलाता है। जहाँ सहजता वहाँ खत्म कार्य-कारण सहजता का अर्थ क्या है कि यह पत्ता होता है न, इस पत्ते को हवा इधर से उड़ाए तो यों ऐसे उड़ जाता है और हवा दूसरी तरफ से उड़ाए तो