________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 447 रहते हैं। अज्ञानी के नहीं बदलते। अज्ञानी तो यों स्थिर हो जाता है, वैसे का वैसा। अहंकार है न! इनमें अहंकर नहीं है, इसलिए आँखें रोती है, सभी कुछ करते हैं। प्रश्नकर्ता : उस समय जब उनकी प्रकृति रोती है, तब वे अंदर अपने स्वरूप में स्थिर रहते हैं? दादाश्री : ठीक है। प्रश्नकर्ता : वे क्या प्रकृति को कंट्रोल नहीं करते? दादाश्री : प्रकृति, प्रकृति के भाव में ही रहती है, उसे कंट्रोल करने की आपको ज़रूरत नहीं है। अगर आप सहज भाव में आ गए तो वह सहज भाव में ही है। यहाँ से अगर मुझे जूतों के बिना संगेमरमर के पत्थर पर से होकर जाना हो तो मैं बोल पढूँगा कि 'अरे जल गया, जल गया, जल गया,' तो वह ज्ञानी है। वर्ना अगर यों दबा दे, बोले नहीं तो समझना कि वह अज्ञानी है। सतर्क रहता है, पक्का रखता है। सहज का मतलब क्या है? जैसा है वैसा कह देना! जिसे केवलज्ञान उपजा हो न, उसकी देह सहज होती है। दौड़ने के टाइम पर दौड़ता है, रोने के टाइम पर रोता है और हँसने के टाइम पर हँसता है। तो पूछते हैं कि 'भगवान महावीर के कान में से जब कीलें निकाली थीं तो वे क्यों रो पड़े थे?' अरे भाई, वे रो पड़े उसमें तेरा क्या जाता है? वे तो रोते ही। वे तो तीर्थंकर थे वे कोई अहंकारी नहीं थे कि आँखें ऐसे रखते या ऐसा कुछ करते। आँखें भींचकर रखते, अगर अहंकारी होते तो! कीलें ठोकते समय करुणा के आँसू थे और निकालते समय वेदना के आँसू थे। और वे आँसू आत्मा के नहीं होते। यह देह आँसूवाली होती है। मैंने कहा, यदि आँसू नहीं आएँ तो हमें समझना है कि मेन्टल हो गया है, या फिर अहंकारी हो गया है वह, पागल है। सभी क्रियाएँ साहजिक होनी चाहिए, अगर ज्ञानी है तो उनके शरीर की सभी क्रियाएँ साहजिक होनी चाहिए!