________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 445 'आत्मज्ञान सरल-सीधुं सहज थये छके नहीं।' (आत्मज्ञान सरल व सीधा है, सहज हो जाए तो कैफ (जानपने का नशा) नहीं चढ़ेगा।) आपको यह सरल-सीधा आत्मज्ञान दिया है। यह जब सहज होगा तब उसे कैफ नहीं चढेगा। 'आत्मज्ञान सरल-सीधुं सहज थये छके नहीं।' बहका हुआ नहीं होता। लोग कहते हैं न कि इसे कैफ हो गया है। देखो न, थोड़ा बहुत जाना उसी में उसका दिमाग़ चढ़ गया है। यानी कि कैफ नहीं चढ़ना चाहिए, कैफ न चढ़ता जाए। जिसने जाना है उसे कैफ नहीं चढ़ता। नहीं जाना है वह बहुत ज़ोर जमाता है। दखल नहीं, तो वह सहज आत्मा तो सहज ही है, स्वभाव से ही सहज है। देह को सहज करना है। इसलिए उसके परिणाम में दखल नहीं करनी चाहिए। उसका जो इफेक्ट होता है उसमें किसी भी तरह की दखल नहीं करनी चाहिए, उसे सहज कहते हैं। परिणाम के अनुसार ही चलता रहता है। दखल करना भ्रांति है। दखल करनेवाला व्यक्ति मन में ऐसा मानता है कि 'मैं कुछ कर रहा हूँ।' 'मैं कुछ कर रहा हूँ।' वह भ्रांति है। ____ व्यवहार में जब तक संपूर्ण तैयार नहीं हो जाते, तब तक संपूर्ण आत्मा प्राप्त नहीं हुआ है। अर्थात् व्यवहार में सहजात्म स्वरूप अर्थात् आमनेसामने किसी की किसी में दखल नहीं रहती। ऐसा होना चाहिए या ऐसा नहीं होना चाहिए, ऐसी दखल नहीं रहती। किसी की किसी में दखल है ही नहीं। अपने-अपने काम करते जाओ। कर्तापुरुष जो करता हैं, उसे ज्ञातापुरुष निरंतर जानता ही रहता है। दोनों ही अपने-अपने कार्य में रहते हैं। देखो आश्चर्य, कैसा आश्चर्य! पूरे दस लाख सालों में यह सब से बड़ा आश्चर्य है। कई लोगों का कल्याण कर दिया। _ 'यह मुझ से हो सकता है और यह मुझ से नहीं हो सकता, इसका मुझे त्याग करना है,' जब तक ऐसा है तब तक सबकुछ अधूरा है। त्याग करनेवाला अहंकारी है। 'यह हमसे नहीं हो सकता' ऐसा कहनेवाला