________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 443 उतना छूटता है, उतना चला जाता है। जितना नहीं देखा' उतना व्यवहार से रहा न! प्रश्नकर्ता : हाँ, वह तो रहा। दादाश्री : आप कहते हो कि 'मुझे जलेबी बहुत भाती है।' यह जलेबी छूटने के लिए ही आई थी लेकिन एक तरफ भाती है' ऐसा कहते हो तो उससे फिर दखल हो जाती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन हम अर्थात् यह शरीर न? दादाश्री : नहीं। इगोइजम, अहंकार। एकता मानी अहंकार ने प्रश्नकर्ता : इसका मतलब ऐसा है कि जो असहज है वह सहज को बाँध लेता है? दादाश्री : जब तक एकता मानी है न, तभी तक! प्रश्नकर्ता : एकता किसने मानी है? दादाश्री : अहंकार ने एकता मानी है, इसलिए। प्रश्नकर्ता : जब तक भेद ज्ञान नहीं हुआ हो, तब तक वह समझ में आए कैसे? दादाश्री : समझ में आएगा ही नहीं न! जब तक अहंकार है, तब तक ‘इट हेपन्स' कैसे कहा जा सकता है? जब तक अहंकार है, तब तक न जाने किस टाइप का पागलपन करे, वह कैसे कहा जा सकता है? आपका अहंकार ज्ञान लेने से चला जाता है और कुछ भाग का जो चार्ज अहंकार है, वह दखल करनेवाला अहंकार चला जाता है और वह इट हैपन्सवाला (डिस्चार्ज) अहंकार रह जाता है। इसी कारण समझ में आता है। प्रश्नकर्ता : डिस्चार्ज करने के लिए, निकाल करने के लिए अहंकार रह जाता है।