________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 441 प्रश्नकर्ता : 'तीन-चार खा लो' ऐसा कौन बताता है? दादाश्री : वही! तेरा चारित्रमोह! चारित्रमोह को विलय भी किया जा सकता है! यों देखो, ज्ञाता-दृष्टा रहो तो चला जाएगा। और अगर जागृति नहीं रखी और निश्चय नहीं किया तो चारित्रमोह पेन्डिंग रहेगा! प्रश्नकर्ता : प्रज्ञाशक्ति दिखाती है न, वहाँ से तो निकाला जा सकता है, ऐसा है। अर्थात् दखलंदाजी बंद हो जाए, ऐसा संभव है। दादाश्री : सही है। प्रश्नकर्ता : फिर, वाणी से भी डखोडखल (दखलंदाजी) हो जाती है? दादाश्री : हाँ, होती है। सभी में डखोडखल तो होती है न! वर्तन से भी डखोडखल होती है। 'चलो' कहते हैं, 'जल्दी है!' उतावला हो जाता है। क्या वहाँ गाड़ी छूट जानेवाली है? नहीं। यों तो अभी तक देर है लेकिन सभी जगह पर डखोडखल ही करता रहता है। ज्ञाता-दृष्टा रहे तो डखोडखल बंद प्रश्नकर्ता : अब इसका उपाय बताइए, दादा! डखोडखल बंद करने का उपाय बताइए। दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टा बन जाओ तो डखोडखल बंद हो जाएगी। ज्ञाता-दृष्टा तो खुद का गुणधर्म है। वह जो चारित्रमोह आया है उसे जानो कि यह चारित्रमोह है। उसे देखना और जानना है। देखोगे तो चला जाएगा। प्रश्नकर्ता : जो देखने-जाननेवाले हैं, वे खुद ही दखलंदाजी करते दादाश्री : देखने-जाननेवाला क्या कभी करता होगा? दखलंदाजी करनेवाले को तो वह देखता है, जानता है कि यह दखलंदाजी कर रहा है। डिस्चार्ज अहंकार डखोडखल करता है। प्रश्नकर्ता : बुद्धि दखल करती है?