________________ 440 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दखल निकाले दखल को प्रश्नकर्ता : यह दखल हुई और हमने निश्चय किया कि अब यह दखल नहीं करनी है, तो यह नई दखल नहीं कहलाएगी? दादाश्री : वह दखल है लेकिन वह दखल पहलेवाली दखल को निकाल देती है न? पहलेवाली दखल को निकालकर यह दखल होती है न। यह दखल उत्तम है। प्रश्नकर्ता : दखल-दखल को निकालती है लेकिन उसके बाद क्या यह दखल रह जाती है? दादाश्री : यह दखल तो अपने आप चली जाती है। बाद में निकालनी नहीं पड़ती। 'सब चले जाओ' ऐसा कहेंगे तो चले जाएँगे! बस! निकालना नहीं पड़ेगा। तुझे ऐसा लगता था कि निकालना पड़ेगा इसे? यह दखल है लेकिन यह दखल अपने आप चली जाएगी! हम कहें कि अब यहाँ आपका काम पूरा हो गया है, चले जाओ, तो चला जाएगा। लेकिन वह पहलेवाली दखल ऐसे नहीं जाती। पहलेवाली दखल इस दखल से जाएगी। मोक्ष मार्ग तो बहुत मुश्किल है। उस तरफ एक इंच भी आगे बढ़ना बहुत कीमती माना जाता है। कोई कहे कि आत्मा अलग है तो वह बड़ा साइन्टिस्ट माना जाता था। उसे पता चला कि यह जुदा है, अन्य कुछ नहीं है। आप तो उससे भी आगे पहुँच गए। चंदूभाई आइस्क्रीम खाने बैठे और अगर उसमें दखल नहीं करे तो दो डिश खाकर उठ जाएँगे लेकिन इसने तो और दखल की कि 'यह अच्छी है, अरे भाई, दो-चार-पाँच खा लो न!' प्रश्नकर्ता : यानी कि वह खुद दखल करता है। दादाश्री : हाँ। अब वहाँ पर प्रज्ञा उसे चेतावनी देती है, 'अरे भाई, ऐसा किसलिए?'