________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 439 प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी भी बहुत सारी हैं न? अभी भी हैं, बहुत दखलें हैं! दिनभर में जिन्हें पहचान नहीं पाते, उनका क्या? दादाश्री : सभी पहचानी जा सकती हैं। जब तू करता है तब पता चल जाता है कि यह दखल हो रही है वापस। थर्मामीटर को क्या देर लगे बताने में कि कितना बुखार आया है? प्रश्नकर्ता : पता चलता है कि यह दखल हो गई है लेकिन जाती नहीं है न? दादाश्री : उसे निकालना नहीं है, उससे अलग रहना है। अलग रहेंगे तो अंदर दखल बंद हो जाएगी। खुद के स्वभाव में रहा जा सकेगा। मेहमान रसोई में नहीं जाता है तो मेहमान कितना कीमती माना जाता है और रसोई में जाकर कढ़ी हिलाने बैठ जाए तो? उसी तरह यह मेहमान कहीं भी जाए, वहाँ पर दखल ही करता है। यह मेहमान ऐसा करता है। प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि थर्मामीटर सभी कुछ बता देता है, तो वह कौन है? दादाश्री : वही, प्रज्ञा चेतावनी दे-देकर मोक्ष में ले जाती है। प्रश्नकर्ता : प्रज्ञाशक्ति तो उसे बताने का काम करती ही रहती है, उसमें हमने दखल की? दादाश्री : दखल करते हैं। चेतावनी देती है फिर भी उसकी सुनते नहीं है और दखल करने से तो लंबे टाइम तक चलता है फिर। चेतावनी किसे देता है? दखल करनेवाले को चेतावनी देता है कि 'ऐसा क्यों कर रहा है तू? इससे क्या फायदा मिलेगा?!' फिर भी यह करता रहता है। इस तरह प्रज्ञाशक्ति का स्वभाव ऐसा है कि उसे चेतावनी दिए बगैर रहती ही नहीं। प्रश्नकर्ता : उस समय भगवान क्या कर रहे होते हैं? दादाश्री : भगवान तो उदासीन, वीतराग।