________________ 438 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) मालिक नहीं हैं। शरीर का मालिकीपना छब्बीस साल से चला गया है और छब्बीस साल से एक सेकन्ड के लिए भी समाधि गई नहीं है। हमें धौल लगाए तब भी हमें समाधि। हम आशीर्वाद देते हैं उसे। दखल को निकालना या उससे जुदा रहना? प्रश्नकर्ता : यह दखलंदाज़ी है तो उसका हमें खुद को कैसे पता चलेगा? दादाश्री : सबकुछ पता चल सकता है, खुद अगर तटस्थ भाव से देखे न, तो! आत्मा थर्मामीटर है। आप जितना कहो उतना नाप निकाल देगा। प्रश्नकर्ता : यह जो खुद की दखलंदाज़ी है और प्रकृति खुद के स्वभाव में है, तो इन दोनों के बीच में फर्क कैसे पता चलेगा? प्रकृति अपने स्वभाव के अनुसार दो डिश आइस्क्रीम ही खाती है, तो इसमें खुद की दखलंदाजी कौन सी? दादाश्री : यह दखलंदाज़ी ज़्यादा खिलाती है और क्या करेगी? 'खाने जैसा नहीं है। हं! ठंडी है। गला खराब हो जाएगा।' वह भी दखलंदाजी है। खाने नहीं दे और ज्यादा खिला दे, ये दोनों दखलंदाज़ियाँ tho प्रश्नकर्ता : तो उसका संतुलन कैसे रखा जा सकता है? दादाश्री : अगर दखलंदाजी नहीं करे तो अपने आप ही संतुलन रहेगा। प्रश्नकर्ता : कोई भी चीज़ अपने आप चलती रहती है लेकिन हमारी कुछ न कुछ दखल रहती है। दादाश्री : यह सब दखल ही है। जितना कम हो सके उतना अच्छा! सिनेमा की दखल कम हुई, रात को नहीं खाता वह दखल भी कम हुई, होटल में नहीं जाता वह दखल भी कम हुई, कितनी सारी दखलें कम हो गईं!