________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 437 होता ही जाएगा लेकिन ये डखोडखल करते हैं। दखल करने से फिर दखलंदाज़ी हो जाती है। डखोडखल करनेवाला कौन है? वे अज्ञान मान्यताएँ और फिर वांधा और वचका (आपत्ति उठाते हैं और बुरा लग जाता है)। प्रश्नकर्ता : देह सहज हो जाए, तो ऐसा कहेंगे कि देहाध्यास गया? दादाश्री : कोई जेब काट ले और वह चीज़ आपको छूए तक नहीं तो देहाध्यास गया। देह को किसी भी तरह से कोई परेशान करे तो उसे देखना है। लेकिन अगर उसे स्वीकार कर लें तो देहाध्यास है। 'मुझे ऐसा क्यों किया' कहा तो वह है देहाध्यास। प्रश्नकर्ता : देह सहज हो गई है, ऐसा कब माना जाएगा? दादाश्री : अपनी देह को कोई कुछ भी करे, फिर भी अगर हमें राग-द्वेष न हों, तो उसे कहते हैं सहज। हमें देखकर यह समझ जाओ। हमें कोई चाहे कुछ भी करे तो भी राग-द्वेष नहीं होते। सहज अर्थात् ज्ञानी की भाषा में जिसे सहज कहा जाता है। देह सहज हो जाए अर्थात् देहाध्यास गया। सहज अर्थात् स्वाभाविक, उसमें कुदरती रूप से स्वाभाविक रहता है, उसमें विभाविक दशा नहीं है। ऐसा भान नहीं है कि 'उसमें मैं खुद हूँ।' प्रश्नकर्ता : यह तो आपने देह की सहजता का प्रकार बताया लेकिन हमारा ऐसा सहज कब होगा? दादाश्री : सहज तो आपने यह जो ज्ञान लिया है न तो वह उसके भान में परिणामित होने पर ये सभी कर्म कम हो जाएँगे तो सहज होता जाएगा। सहज हो रहा है। अभी भी वह एक-एक अंश करके संपूर्ण सहज हो जाएगा। देहाध्यास छूट जाए तो सहज की ओर जाता रहेगा अर्थात् अभी भी सहज हो ही रहा है। जितने अंशों तक सहज हो जाए उतने अंशों तक समाधि उत्पन्न होती है। हम सहज रहते हैं पूरे दिन क्योंकि हम एक क्षणभर के लिए भी इस देह के मालिक नहीं हैं। इस वाणी के मालिक नहीं हैं और इस मन के