________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 435 दादाश्री : वस्तु सहज है। प्रश्नकर्ता : तो फिर यह अपना स्वभाव है? आत्मा का? दादाश्री : वह तो आत्मा का स्वभाव है। जैसे यह पानी मिसीसिपी नदी में से निकलता है तो यों तीन हजार मील तक चलकर समुद्र को ढूंढ ही निकालता है। उसका स्वभाव है, सहज स्वभाव है। प्रश्नकर्ता : उस स्वभाव में आने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है न? दादाश्री : विभाविक पुरुषार्थ करें तो मिल पाएगा क्या? पागल इंसान पुरुषार्थ करके समझदार बन जाए, ऐसा हो सकता है क्या? अतः समझदार इंसान की शरण में जाना है और कहना कि आप कृपा कीजिए। प्रश्नकर्ता : नहीं! आप कहते हैं न दादा, कि मोक्ष दो घंटे में मिल जाता है। सर्व प्रथम अगर ज्ञानी से मिलने के अंतराय चले जाएँ तो! दादाश्री : हाँ, लेकिन वे अंतराय जाते नहीं हैं न! अंतराय डाले हुए प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन आपने ऐसा कहा है कि 'उसे सिर्फ देखने को ही कहा है, ज्ञाता-दृष्टा भाव से।' दादाश्री : देखना ही पड़ेगा। जो अंतराय हैं, वे संयोगों के रूप में आते हैं और वे स्वयं ही वियोगी स्वभाव के हैं। उन्हें देखने से ही छुटकारा होगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, उसके लिए तो कितने जन्म लेने पड़ेंगे? तो क्या ये सब निकाली हैं, ऐसा है? दादाश्री : निकाली ही हैं। लोगों को यह समझ में नहीं आने की वजह से ही यह गड़बड़ की है। समझ लो न कि निकाली हैं ! यदि ग्रहणीय करेंगे तो चिपक पड़ेंगे। यदि त्याग करेंगे तो अहंकार पकड़ लेगा। त्याग करनेवाले भी अहंकारी होते हैं और त्याग का फल आगे जाकर मिलता है।