________________ 434 आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) लगेगा। अभी तक नहीं थी इसलिए नहीं लगा। यदि इच्छा होगी, तो नंबर लगेगा। इन सभी का लगा है तो फिर आपका क्यों नहीं लगेगा? क्योंकि समझ में नहीं आया था कि यह क्या है? इस वर्ल्ड में समझ में कैसे आए? यह अलौकिक चीज़ दस लाख सालों में एक ही बार प्रकट होती है, ऐसी चीज़ है। अक्रम विज्ञान से स्त्री-पुरुष संसार में रहकर भी मोक्ष भोगते हैं। देखो आपको संसार में सभी तरह की छूट दी है न। दस लाख साल में प्रकट होता है, जबकि मैं तो सिर्फ निमित्त बन गया हूँ। सारा काम निकाल लेना है। देखने से जाते हैं अंतराय प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्ति सहज है। इस सहज में जो अंतराय आते हैं, उनको रोकना पुरुषार्थ है तो यह समझाइए कि अंतराय कौन-कौन से हैं? दादाश्री : वे अपने पूर्वजन्म के किए हुए हस्तक्षेप हैं, अपनी दखलंदाज़ियाँ हैं। प्रश्नकर्ता : हाँ। लेकिन कौन-कौन सी दादा? दादाश्री : ये सभी दखलंदाज़ियाँ होती हैं तो फिर पता चलता है न ! कड़वा फल आए तो जानना कि हमने किसी को दुःख दिया था। मीठा आए तो किसी को सुख दिया था। ऐसा उसे मालूम हो जाता है न! प्रश्नकर्ता : ये जो सारे अंतराय हो चुके हैं उनका निवारण करने के लिए, उन्हें टालने के लिए, उन्हें निकालने में पुरुषार्थ रहा हुआ है? दादाश्री : हाँ। लेकिन पुरुषार्थ का मतलब सिर्फ 'देखना' है, अंतरायों को देखना हैं। और कुछ नहीं करना है। हटाने के लिए तो हटानेवाले की ज़रूरत पड़ेगी वापस / यानी कि संयोगों को हटाना गुनाह है। जो संयोग वियोगी स्वभाव के हैं, उन्हें हटाना गुनाह है। अतः हमें सिर्फ देखते ही रहना है। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, क्या यह बात सत्य है कि मोक्ष प्राप्ति के इस पुरुषार्थ में कोई कर्तापन नहीं है। यह ठीक है?