________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 433 प्रश्नकर्ता : अब उसकी प्रकृति अगर सहज नहीं रहे तो वह देखता और जानता है। दादाश्री : हाँ, उतनी कमी है, फाइलों का निकाल करने में उतनी ही देर लगती है। उतनी जागृति उत्पन्न नहीं हुई है। जागृति निर्बल है। प्रत्येक क्षण जागृति रहनी चाहिए। तब लगती है मुहर मोक्ष की प्रश्नकर्ता : मोक्ष की स्थिति प्राप्त कर ली है, ऐसा कब माना जाएगा? दादाश्री : मोक्ष की स्थिति, आप किसी को गालियाँ दो न, तब भी आप मोक्ष में ही हो लेकिन अन्य कोई गालियाँ नहीं दे रहा है, फिर भी मोक्ष में नहीं है। वह किस तरह से समझ में आए इन लोगों को? आत्मा की सहज स्थिति और देह की सहज स्थिति, वही मोक्ष है। देह की सहज स्थिति अर्थात् आपने किसी को धक्का मार दिया न, तब भी मैं जानता हूँ कि आत्मा यह नहीं कर रहा है। आप नहीं कर रहे हो। आपको ऐसा पता चलता है न कि आप नहीं कर रहे हो? आपकी इच्छा नहीं है फिर भी हो जाता है, वह देखना है, वह देह की सहज स्थिति है। उसमें डखोडखल (दखलंदाजी) करें तब भी वापस सहज स्थिति चली जाएगी। प्रश्नकर्ता : आत्मा की ऐसी सहज स्थिति प्राप्त होने के बाद सभी में कितना समय टिकती है? दादाश्री : हमेशा के लिए टिकती है। यह हमेशा रहे तभी मोक्ष कहलाएगा न! यहीं पर मोक्ष हो जाना चाहिए। यहाँ पर लगभग पंद्रह हज़ार लोगों का मोक्ष हो ही चुका है, बाकी के सभी उसकी तैयारी में हैं। कुछ लोगों का हो गया है, कुछ लोगों का होता जा रहा है। पहले चिंता बंद हो जानी चाहिए। प्रश्नकर्ता : हमारा नंबर लगेगा क्या? दादाश्री : आपकी इच्छा होगी तो लगेगा, आपकी इच्छा नहीं तो नहीं