________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 431 वापस ले लेनी हैं डखोडखल प्रश्नकर्ता : बोम्बे में जो क्रिकेट मेच स्टार्ट हो रहा है। उसे यहाँ से अपने एक-दो लोग देखने जानेवाले हैं। तो मैंने उनसे कहा कि 'तू सुबह दादा के दर्शन करने नहीं जाता और तू कहता है कि मुझे दुकानवाले पार्टनर डाँटते हैं तो इन पाँच दिनों के लिए तुझे कैसे जाने देंगे? तुझे डाँटेंगे नहीं वे?' तो यह जो मैंने बात की, तो क्या उसमें डखोडखल है? दादाश्री : वहाँ पर हम क्या कहते कि 'भाई, क्या-क्या देखने जा रहा है?' तब यदि वह कहे, 'मैं मेच देखने मुंबई जा रहा हूँ।' तो हम कहते, 'उसके बिना चले ऐसा नहीं है?' तब यदि वह कहे, 'नहीं, जाना ही पड़ेगा।' तब हम कहते, 'ठीक है।' रोकने से रोका नहीं जा सकता! ऐसा कहकर शब्द वापस ले लेने चाहिए। प्रश्नकर्ता : जो कहा वह डखोडखल (दखलंदाजी) हो गई? दादाश्री : नहीं, अगर वे शब्द वापस नहीं लेंगे तो डखोडखल हो जाएगी। नहीं तो वह कहेगा भी सही कि चंदूभाई बिना बात के टोकते रहते हैं। इसलिए कहने के बाद हमें उसे वापस ले लेना चाहिए कि 'नहीं ठीक है।' हम ऐसा कहते हैं, लेकिन हम तो वे शब्द वापस ले लेते हैं। हमें नहीं कहना चाहिए आपको। इस तरह अगर शब्द वापस नहीं लोगे तो उसे 'दखल' करना कहा जाएगा। दखल करने से दखलंदाजी हो जाती है। हम तो उसे कहेंगे लेकिन प्रकृति छोड़ेगी नहीं न! वह खुद नहीं कहता। वह सभी करार करके आया हो, फिर भी करार तोड़कर चला जाता है क्योंकि प्रकृति से बंधा हुआ है। डिस्चार्ज हैं वह कर्म। इसलिए किसी को साधारण रूप से भी टोकना नहीं चाहिए। उसे इतना ही कहना चाहिए कि 'सत्संग में आना।' पॉज़िटिव बोलना, नेगेटिव मत बोलना, नेगेटिव में सब जगह दखलंदाज़ी हो जाएगी। कहेंगे तो फिर उसके शब्द हमें वापस मिलेंगे कि 'नहीं। मुझे जाना पड़ेगा। आप मना कर रहे हो लेकिन मुझे जाना है।' तो फिर हमें समझ जाना है कि यह दखल की, इसलिए