________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 427 दादाश्री : दुःख हो जाए तब तो फिर वह सहजता नहीं है। कुछ न कुछ बिगाड़ है उसमें, नहीं तो दुःख नहीं होना चाहिए। हमारा सबकुछ सहज है। इसलिए सहजता की तरफ जाना है। यह सहजता का मार्ग है। नो लॉ (कायदा) लॉ, सहजता में ले जाने के लिए ही है। लॉ हो तो सहजता कैसे आएगी? अभी जैसे मैं यहाँ पर बैठा हूँ, ऐसे नहीं बैठते। वैसा कुछ आया हो न, तो स्पर्श नहीं करता। वे सभी बातें साहजिकता नहीं हैं। साहजिक अर्थात् जैसे ठीक लगे वैसे रहे। दूसरा विचार ही नहीं आए कि ये लोग मुझे क्या कहेंगे या ऐसा सब नहीं होना चाहिए। अर्थात् यह साहजिकता वगैरह यों यह सब देखोगे तो आपको पता चल जाएगा कि ये भाई ऐसे हैं। प्रश्नकर्ता : अहंकार भी साहजिक हो जाता है या नहीं? दादाश्री : वह पहचान जाएँगे हम, मूलतः अहंकार अंधा है। वह चाहे कहीं भी जाए लेकिन अंधा है इसलिए उसका पता चल जाता है। टकराए बगैर रहता ही नहीं। प्रश्नकर्ता : हाँ, तो फिर वहाँ पर साहजिक नहीं है? दादाश्री : नहीं! जहाँ अहंकार हो वहाँ पर साहजिकता होगी ही नहीं न! अहंकार से रुकी है पूर्णाहुति प्रश्नकर्ता : अहंकार हमेशा अवरोधकारक है या उपयोगी भी है? दादाश्री : अहंकार के बगैर तो इस दुनिया में ये बातें भी नहीं लिखी जा सकतीं। चिट्ठी लिखनी हो न, वह भी अहंकार की गैरहाज़िरी में नहीं लिखी जा सकती। अहंकार दो प्रकार के हैं। एक डिस्चार्ज होता हुआ (मृतप्राय) अहंकार, जो लटू जैसा है और दूसरा चार्ज होता हुआ (जीवित) अहंकार, जो शूरवीर जैसा है। लड़ता भी है, झगड़ता भी है, सभी कुछ करता है। डिस्चार्ज अहंकार के हाथ में तो कुछ भी नहीं है बेचारे के, मानो जैसे लटू घूम रहा हो / अर्थात् अहंकार के बगैर तो दुनिया में कुछ