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[३.२] दर्शन सामान्य भाव से, ज्ञान विशेष भाव से
लेकिन उसके पीछे कितना बड़ा विज्ञान छुपा हुआ है न!
यहाँ से गाड़ी में जाएँ न, तो दो प्रकार के दर्शन हैं। एक है सामान्य भाव से दर्शन, उसे दर्शन कहते हैं और विशेषभाव से दर्शन को ज्ञान कहते हैं। विशेष भाव से दर्शन का मतलब क्या है? यह नीम है, यह आम है, इसे विशेष भाव कहते हैं और सामान्य भाव से देखना दर्शन कहलाता है। सामान्य भाव में सभी जीव आ जाते हैं। सभी जीवों को शुद्धात्मा भाव से दर्शन करते हैं। और विशेष भाव में तो सभी जीव रह जाएँगे और नीम और आम बस इतना ही देख पाएँगे । अर्थात् विशेष भाव की बजाय सामान्य भाव अच्छा है। विशेष भाव में नहीं पड़ना है, लेकिन अगर कोई चारा ही न हो वहाँ पर, सामने अगर नगीनदास सेठ आ रहे हों तो वापस विशेष भाव में आना पड़ता है न? चारा ही नहीं है न! है न? और अगर कोई पूछे कि यहाँ पर आम है या नहीं? तब फिर हमें दिखाना पड़ेगा न? लेकिन अनिच्छा से ! हमें जान-बूझकर इस चीज़ में नहीं पड़ना है कि यह आम है और यह नीम ! अरे भाई, अनंत जन्मों से यही किया है न, और क्या किया है तूने? किसका बेटा नीम और किसका बेटा आम अब ये सारी झंझट क्यों? हमें अपने आम खाने हैं, खाओ न चुपचाप !
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प्रश्नकर्ता : जानने की भी ज़रूरत नहीं है, तू सिर्फ देखता रह। और जानकर बल्कि ज़्यादा दुःखी होते हैं कि यह बबूल है और वह आम है, तो फिर उसमें फिर राग और द्वेष घुस जाएँगे ।
दादाश्री : बबूल देखने में एक मिनट चला जाता है। एक मिनट में तो कितना ही देखा जा सकता है, कितने ही आत्मा देख सकते हैं ।
हम जानने का प्रयास नहीं करते, हम देखने का ही प्रयत्न करते हैं । जानने में फँस गया कि यह किसका पेड़ है, तो उसके लिए फिर वापस बुद्धि की मगजमारी करनी पड़ती है ! और फिर, यह मुझे अच्छा लगता है और यह नहीं, वापस अंदर ऐसा भूत घुस जाता है।
अर्थात् यह बिल्कुल सेफ साइडवाला मार्ग है, अगर आप हमारे कहे अनुसार समझोगे तो!