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टालो कंटाला! (४)
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दादाश्री : नहीं, ऐसा है न, यह जो सांसारिक सुख है वह कल्पित सुख है, इस सुख से इंसान मदहोश हो जाता है। लेकिन जब खुद का सच्चा सुख, शाश्वत सुख मिले जो कि तृप्ति देता है, तो उससे इंसान मदहोश होगा ही नहीं। यह तो कल्पित सुख से इंसान ऐसे मदहोश हो जाता है। सच ही कहा है, वह कल्पित सुख यदि हमें हमेशा के लिए मिल जाए तो इंसान फिर मदहोश हो जाएगा, पागल हो जाएगा। क्योंकि कल्पित सुख है और कल्पित सुख यदि अधिक बढ़ जाए तो इंसान मदहोश हो जाता है। इसलिए उसके लिए कंट्रोल की ज़रूरत है ही। थोड़ी देर मार पड़ती है और फिर थोड़ी देर सुख मिलता है! ये मार और सुख, दोनों कल्पित हैं। और यह आत्मा का सुख, वह शाश्वत सुख है, स्थायी सुख है। यह सुख आने के बाद जाता नहीं है। यह सुख तो जब खुद को खुद के स्वरूप का ज्ञान हो जाए, खुद के सेल्फ का रियलाइज़ेशन हो जाए, तब उत्पन्न होता है।
यह घड़ी चलती है या नहीं, तू ऐसा रियलाइज़ करके लाया है या यों ही ले आया?
प्रश्नकर्ता : रियलाइज़ करके।
दादाश्री : हाँ, तो यह सब रियलाइज़ करके लाया है और खुद अपने आप को रियलाइज़ नहीं किया। लोग वाइफ को भी रियलाइज़ करके लाते हैं न? लेकिन खुद अपने आपको रियलाइज़ कर ले न! वह नहीं करना चाहिए क्या?