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चिंता से मुक्ति जगत् में, चिंता की दवाई क्या है? दादाश्री : आपने कभी चिंता देखी है या नहीं देखी? प्रश्नकर्ता : देखी है न। दादाश्री : अच्छी तरह से पहचानते हो? प्रश्नकर्ता : चिंता में और सिर्फ चिंता में ही डूबा हुआ हूँ।
दादाश्री : चिंता में ही रहते हो, फिर देखने को रहा ही कहाँ? हमेशा चिंता ही है न?
प्रश्नकर्ता : लेकिन चिंता तो सभी को होती है न!
दादाश्री : तो फिर ऐसा घर जैसा ही संबंध होगा न? बारबार आए और जाए, बार-बार आए और जाए, ऐसा संबंध है?
प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन यों तो मुझे चिंता रखनी ही नहीं है न!
दादाश्री : वह तो, सभी ऐसा ही कहते हैं कि मुझे चिंता नहीं रखनी है, लेकिन चिंता किसी को भी छोड़ती नहीं है न! वह तो रात को ग्यारह बजे भी आकर साथ में ही खड़ी रहती है और पूरे दिन भी चिंता, कि 'ऐसा हो जाएगा और वैसा हो जाएगा।' उसके बाद फिर मुँह पर जैसे अरंडी का तेल चुपड़ लिया हो वैसा नहीं हो जाएगा?