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आप्तवाणी-७
प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन वह तो उसकी कंपनी, फ्रेन्ड सर्कल पर निर्भर करता है।
दादाश्री : हाँ, लेकिन कंपनी किस पर निर्भर है? आज किस तरह की कंपनी मिलेगी, वह किस पर निर्भर है? आज मैं तुझे मिलनेवाला हूँ, यह कंपनी मिलनेवाली है, वह किस पर निर्भर है?
प्रश्नकर्ता : यह तो जीवन का चक्र है!
दादाश्री : हाँ, लेकिन इस चक्र को कौन घुमाता है? किसलिए घुमाता है? किसी को ऐसी जगह पर क्यों पटक देता है और किसी को जेब कटे वैसी जगह पर क्यों ले जाता है?
प्रश्नकर्ता : यह सब कुदरती है क्या?
दादाश्री : हाँ, कुदरत। उसे अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स कहते हैं, वही इस पूरे जगत् को चलाती है।
अब यदि तुझे कोई ऐसी दवाई मिल जाए जिससे कंटाला नहीं आए, तो तुझे अच्छा नहीं लगेगा? जिंदगीभर कंटाला नहीं आए, चिंता नहीं हो, उपाधि नहीं हो, तो बहुत अच्छा रहेगा न?
प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा होगा ही नहीं न, इम्पोसिबल बात है।
दादाश्री : ऐसा है न, कि यह 'इम्पोसिबल' शब्द है न, वह भी 'पोसिबल' शब्द में से उत्पन्न हुआ है। यानी कि 'इम्पोसिबल' शब्द का जन्मस्थान 'पोसिबल' शब्द है। इसलिए सभी कुछ संभव है। अभी 'इन' सभी को कोई चिंता नहीं है। 'इन' सभी से कहा है कि एक भी चिंता हो तो मुझ पर दावा करना।
प्रश्नकर्ता : कंटालारहित ज़िंदगी हो और जीवन में सुख ही मिले तो फिर मनुष्य मदहोश नहीं हो जाएगा?