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टालो कंटाला! (४)
रखना अच्छा। यह तो कोई मान दें तो प्रिय लगने लगता है और अपमान करे तो अप्रिय लगने लगता है। जहाँ अप्रिय लगे वहाँ पर द्वेष होता है। जहाँ द्वेष होता है वहाँ कर्म बंधते हैं। जहाँ कर्म बंधे, वहाँ पर अगला जन्म मिलता है। इस प्रकार ये सब मुश्किलें हैं इसमें । प्रश्नकर्ता : प्रिय-अप्रिय, पसंद-नापसंद, वह सब किस आधार पर खड़े हैं?
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दादाश्री : वे सब अज्ञानता के कारण खड़े हैं। इन सबका मूल आधार अज्ञानता है और फिर वह अज्ञानता भी आधारी है। अज्ञानता को आधार देनेवाला कोई चाहिए या नहीं चाहिए?
प्रश्नकर्ता : अज्ञानता को आधार देनेवाला कौन है?
दादाश्री : वह खुद ही, वही अहंकार है । अहंकार के कारण खुद, अज्ञान को आधार देता है कि, 'नहीं, ठीक है, करेक्ट है । ' अब जब हम वह अहंकार निकाल देते हैं, तब अज्ञान निराधार होकर गिर पड़ता है, वर्ना अहंकार ही हर रोज़, पूरे दिन, अज्ञान को आधार देता रहता है I
कंटाला (बोरियत) उस शब्द का पृथक्करण किया है कि कंटाला शब्द किस पर से बना होगा? ये काँटें सब यों ही बिखरे पड़े हों, और उन पर बिस्तर बिछाएँ तो फिर कैसी शांति रहेगी? फिर कंटाला आएगा। काँटे का बिस्तर, उसी का नाम कंटाला । तुझे ऐसे बिस्तर पर सोना पसंद है? ऐसा पसंद है?
प्रश्नकर्ता: ऐसा किसे पसंद आएगा ?
दादाश्री : पसंद नहीं आए तो उसका उपाय ढूँढ निकालना पड़ेगा। क्या तूने ढूँढ निकाला है? क्या ढूँढा है?
प्रश्नकर्ता : वह तो अपने आप ही निकल आता है।
दादाश्री : तो अब फिर से, छह महीने बाद भी कंटाला नहीं आएगा, क्या ऐसा तय हो गया है?