________________ रुकावट डालने से डलें अंतराय (23) 351 आत्मा तो भगवान हैं, वह कोई ऐसी-वैसी बात है? लेकिन हमने खुद ने अंतराय डाले हैं तो क्या हो? हमें तो इतना ही समझना चाहिए कि भाई, यह अतंराय कर्म क्यों रुकावट डाल रहे हैं? ये लोग नहीं कहते कि 'मुझे तो अंतराय रुकावट डालते हैं?' अरे! लेकिन क्यों? यदि जान जाएँ तो फिर वापस ऐसा नहीं करेंगे कितनी बड़ी भूल! किस तरह समझ में आए? कितने सारे अंतराय डाले हैं जीव ने! ये 'ज्ञानीपुरुष' हैं, हाथ में मोक्ष देते हैं, चिंता रहित स्थिति बना देते हैं, फिर भी अंतराय कितने सारे हैं कि उसे वस्तु की प्राप्ति ही नहीं होती! भगवान तो ये रहे। मैं आपके भीतर देख रहा हूँ, लेकिन आपको नहीं दिखते। भगवान कहाँ दूर गए हैं? लेकिन हुआ क्या है? कि बीच में जो अंतराय पड़े हुए हैं, वे खुद को किस तरह दिखेंगे अब? वे अंतराय खुद ने ही डाले हैं। क्या कहता है कि, 'मैं चंदूभाई हूँ।' तब भगवान क्या कहते हैं कि, 'अच्छा। तब जितना बोले उतनी ही आपको रुकावटें आएँगी।' अब वे रुकावटें आपको ही हटानी पड़ेंगी। लेकिन वह फिर अपने आप नहीं हटेंगी, वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' मिलें और वे हटा दें, तब हटेंगी! जय सच्चिदानंद