________________ रुकावट डालने से डलें अंतराय (23) 349 डलते हैं। और 'जाना ही है, क्यों नहीं जा सकता?' उन विचारों से अंतराय टूटते हैं। औरों को रुकावट डालने से डलें अंतराय राजा किसी पर खुश हो जाए तो कोषाध्यक्ष से कहेगा कि, 'इसे एक हजार रुपये दे देना।' तब वह कोषाध्यक्ष सौ देता है। कुछ जगहों पर तो कोषाध्यक्ष ठाकुर को समझा देता है कि, 'इस व्यक्ति में कुछ है ही नहीं, यह तो सब गलत है।' जो देने को तैयार है, उसे रोकता है। तब उसका फल अगले जन्म में क्या आएगा? उसे कभी भी पैसा मिलेगा ही नहीं, लाभांतराय पड़ जाएगा। किसी के लाभ में आपने रुकावट डाली हो तो लाभांतराय पड़ता है। उसी तरह जिस-जिस में आप रुकावट डालते हो, किसी के सुख में रुकावट डालते हो, किसी के विषयसुख में रुकावट डालते हो, जिस किसी चीज़ में आप रुकावट डालते हो, तो उन सभी में आपको रुकावट आएगी और तब क्या कहोगे कि, 'मुझे अंतराय कर्म बाधक है।' कोई सत्संग में आने के लिए तैयार हो और आप मना करो तो आपको अंतराय पड़ेंगे। यानी जिसमें आप रुकावट डालोगे उसका फल आपको भुगतना पड़ेगा। कुछ कोषाध्यक्ष तो ऐसे अक्लमंद होते हैं कि राजा को बख्शीश ही नहीं देने देता। राजा को ऐसी सलाह देनी चाहिए? फिर क्या होता है? उसने अंतराय डाले, इसलिए उसी को अंतराय डल जाते हैं, फिर उसे किसी जगह पर लाभ ही नहीं होता। कुछ लोग तो, कोई किसी गरीब आदमी को कुछ दे रहा हो तो उससे पहले ही वह अंतराय डाल देता है। अरे, उसमें क्यों दख़ल करते हो? / आपके वहाँ बिरादरी में सब लोग भोजन करने बैठे हो, उनमें से एक व्यक्ति कहे कि, 'इन चार-पाँच जनों को भोजन के लिए बिठा दो,' और यदि आप मना करते हो न, तो वह आप भोजन के अंतराय डालते हो। उसके बाद किसी जगह पर ऐसी मुश्किल में, सचमुच में मुश्किल में आ जाते हो। दूसरों में