________________ 346 आप्तवाणी-७ इस दुनिया का सामना तो कैसे कर सकेंगे? इसलिए हमने तो क्या कहा है कि, 'भुगते उसी की भूल।' अपनी भूल है, ऐसा कब पता चलेगा कि जब हमें भुगतना पड़ेगा तब। यह आसान रास्ता है न? एक भाई ने आपको ढाई सौ रुपये नहीं दिए और आपके ढाई सौ रुपये डूब गए, उसमें भूल किसकी? आपकी ही न? भुगते उसी की भूल। इस ज्ञान से धर्म होगा, यानी सामनेवाले पर आरोप करना, कषाय करना सब छूट जाएगा। अतः यह 'भुगते उसी की भूल' वह तो मोक्ष में ले जाए ऐसा है! यह तो एक्जेक्ट निकला है कि 'भुगते उसी की भूल।'