________________ वसूली की परेशानी (22) 343 किसी को रुपये दिए हों न, तो इस समुद्र में काले कपड़े में बाँधकर डालने के बाद भी आशा रखने जैसी मूर्खता है। यदि कभी आ गए तो जमा कर लेना और उस दिन उसे चाय-पानी पिलाना कि, 'भाई, आपके ऋणी हैं कि आप वापस आकर रुपये दे गए, नहीं तो इस काल में रुपये वापस नहीं आते। आप दे गए वह आश्चर्य ही कहलाएगा।' वह कहे कि, 'ब्याज नहीं मिलेगा।' तो कहना, 'मूल रकम ले आए वह बहुत है न!' समझ में आता है? ऐसा जगत् है! जो लाता है, उसे वापस देने का दुःख है। जो उधार देता है, उसे वापस लेने का दुःख है। अब इसमें कौन सखी? और है 'व्यवस्थित'! नहीं देता वह भी 'व्यवस्थित' है और मैंने डबल दिए वह भी 'व्यवस्थित' है। प्रश्नकर्ता : आपने दूसरे पाँच सौ रुपये वापस क्यों दिए? दादाश्री : फिर किसी जन्म में उस व्यक्ति के साथ अपना पाला नहीं पड़े इसलिए। इतनी जागृति रहे न, कि यह तो घर भूले। वह कहेगा कि, 'मैं नहीं दे सकता इसलिए कुछ रियायत कर दीजिए।' तो ऐसे के साथ व्यवहार रखा जा सकता है और फिर अगले जन्म में मिल जाए तो हर्ज नहीं! लेकिन ऐसे इंसान के तो किसी भी जन्म में दर्शन नहीं होने चाहिए। हमारी बिरादरी में शामिल ही नहीं हो तो अच्छा। हमारी बिरादरी में कब तक रहेगा कि जब तक वह कहे कि, 'मेरे पास सुविधा नहीं है तो आप रियायत कर दीजिए।' तब तक हमारी बिरादरी में रहेगा। लेकिन यदि दूसरी तरह का बोलेगा तो वह तो हमारी बिरादरी में आ ही नहीं सकता। काम ही नहीं चलेगा न! हमारी बिरादरी के साथ लेना-देना ही नहीं न! फिर से मिले ही नहीं तो अच्छा है, फिर कभी भी उसके दर्शन नहीं हो। वह समझता है कि, 'मुझे पैसे मिल गए।' हम कहते हैं कि, 'तुझे मिले हैं और हमारी इच्छा थी, मेरा एक बड़ा हिसाब पूरा हो गया न! इसलिए तू खुश रह!' इस क्वॉलिटी का तो सामना किस तरह कर सकते हैं? अब इसे