________________ 342 आप्तवाणी-७ है? यह लोभ नाम का गुण ही उसे काट रहा है, परेशान कर रहा है। जिसने उधार दिया, उसी ने चुकाया! कैसा फँसाव? ऐसा है न, कि हमने किसी के लिए हों, दिए हों, लेनादेना तो जगत् में करना ही पड़ता है न! यानी किसी व्यक्ति को कुछ रुपये दिए हों, और वे वापस नहीं आएँ तो उसके लिए मन में क्लेश होता रहता है, इच्छाएँ होती रहती हैं कि 'यह कब देगा, कब देगा।' तो इसका कब अंत आएगा? का साल-डेढ़ साल मिल गए, तो मुझे याद आपके पास अ हमारे साथ भी ऐसा हुआ था न! पैसे वापस नहीं आए उसकी फिक्र तो हम शुरू से करते ही नहीं थे। लेकिन साधारण याद दिलाते थे। उसे कह ज़रूर देते थे। हमने एक व्यक्ति को पाँच सौ रुपये दिए थे। जो दिए, वे खाते में तो लिखे नहीं थे या चिट्ठी में उसके हस्ताक्षर वगैरह कुछ भी नहीं थे न! उस बात का साल-डेढ़ साल हुआ होगा। मुझे भी कभी याद नहीं आया। एक दिन वे व्यक्ति मिल गए, तो मुझे याद आया। फिर मैंने कहा कि, 'वे पाँच सौ रुपये भिजवा देना, यदि आपके पास अभी सहूलियत हो तो मेरे जो पाँच सौ रुपये लिए हैं वे भिजवा देना।' तब वह कहने लगा कि, 'कौन-से पाँच सौ?' मैंने कहा कि, 'आप मेरे पास से ले गए थे न! वे।' तब उन्होंने कहा कि, 'आपने मुझे कब दिए थे। रुपये तो मैंने आपको उधार दिए थे। वह आप भूल गए?' तब मैं तुरंत समझ गया। फिर मैंने कहा कि, 'हाँ, मुझे याद करने दो।' थोड़ी बार ऐसे-वैसे सोचकर मैंने कहा कि, 'हाँ, मुझे याद तो आ रहा है, इसलिए कल आकर ले जाना।' फिर दूसरे दिन रुपये दे दिए। वह आदमी यहाँ आकर परेशान करे कि आप मेरे रुपये नहीं दे रहे है तो क्या करोगे? ऐसी घटनाएँ हुई हैं। यानी इस जगत् के लोगों का सामना कैसे करोगे? आपने