________________ 340 आप्तवाणी-७ हैं, इसलिए अपने नहीं हैं।' तब आपको नहीं समझ जाना चाहिए कि यह स्त्री इतनी समझदार है, मैं अकेला ही बेअक्ल हूँ? और पत्नी का ज्ञान आपको तुरंत पकड़ लेना चाहिए न? एक नुकसान हुआ उसे जाने दो, लेकिन दूसरा नुकसान मत उठाओ। लेकिन यह तो जो नुकसान हो गया है, उसी के लिए रोना-धोना मचाता रहता है! अरे, चला गया उसके लिए क्यों रो रहा है? अब फिर से नहीं जाएँ, उसके लिए रोना-धोना कर। हमने तो साफ-साफ ऐसा रखा था कि जितने गए, उतने कम करके रख दो! देखो न, पचास हज़ार के हीरे ले जानेवाला आदमी चैन से पहनता है और यहाँ ये सेठ चिंता करता रहता है! सेठ से पूछे कि, 'क्यों कुछ उदास दिख रहे हो?' तब कहेगा, 'कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं। यह तो ज़रा तबियत ठीक नहीं रहती।' वहाँ गलत बोलता है। अरे, सच बोल न कि, 'भाई, पचास हज़ार के हीरे दिए हैं उसके पैसे नहीं आए, इसलिए मुझे चिंता हो रही है।' सच-सच ऐसा कह दे तो उसका उपाय मिलेगा! यह तो सही बात नहीं कहता और उलझन में आकर गलत बोलते रहता है। लक्षण कैसे? मानी के! लोभी के! हमने तो ऐसा नक्की किया हुआ था कि यदि रुपये माँगने जाएँगे, तो वह दोबारा लेने आएगा न? इसलिए माँगना ही बंद कर दो। वसूली छोड़ दो, तो कोई झंझट ही नहीं! हमारे घर पर तो चार-चार गाड़ियाँ पड़ी रहती थी, क्योंकि, कौन ऐसा परोपकारी आदमी मिलेगा? 'आईए अंबालालभाई' कहें तो हो गया! ऐसा भोला आदमी कौन मिलेगा? चाय-पानी वगैरह नहीं पिलाओ तो भी चलेगा, लेकिन 'आईए पधारिए' कहा कि बस, बहुत हो गया! भोजन नहीं करवाएगा तो भी चलेगा, दो दिन भूखा रह जाऊँगा। तेरी गाड़ी की अगली सीट पर मुझे बिठाना, पीछे नहीं। इसलिए वे लोग मेरे लिए आगे की सीट रोककर ही