________________ 338 आप्तवाणी-७ ऐसा समय आए तब खुद छुटकारा नहीं कर लेता, फिर वापस छूटने का समय ही नहीं आएगा न! और जो छूटा हुआ होगा वही छुड़वाएगा, बंधा हुआ हमें क्या छुड़वाएगा? बाकी पैसों का महत्त्व नहीं है, अपना मन कमजोर नहीं हो जाए, उसका महत्त्व है। हमें एक दिन विचार आए कि, 'ये पैसे नहीं देगा तो क्या होगा?' उससे अपना मन ही फिर कमज़ोर होता जाता है। यानी देने के बाद हमें नक्की करना चाहिए कि समुद्र में काले कपड़े में बाँधकर फेंक रहे हैं। वापसी की आशा रखनी चाहिए? तो देने से पहले ही आशा रखे बगैर दो, नहीं तो देना मत। लोभ भी आर्तध्यान करवाए धर्मध्यान की भगवान महावीर की जो चार आज्ञाएँ हैं, वे क्या पुरानी हो गई हैं? वे आज्ञा पुरानी नहीं होतीं, भले ही बहुत काल बीत गया है। अभी कोई सेठ हो और उससे दो हीरे कोई ले गया और 'दस दिन में पैसे दूंगा' ऐसा कहा, फिर छह महीनेबारह महीने तक पैसे नहीं दे तो क्या होगा? सेठ पर कुछ असर होगा क्या? प्रश्नकर्ता : मेरे पैसे गए, ऐसा होगा। दादाश्री : मेरा कहना है कि एक तो हीरे गए, वह नुकसान तो हुआ और ऊपर से वापस आर्तध्यान करता है? और हीरे दिए वे हमने राज़ी-खुशी दिए हैं, तो फिर उसके लिए कुछ दुःख नहीं होना चाहिए न? प्रश्नकर्ता : लोभ था, इसलिए दिए न? दादाश्री : फिर वही लोभ आर्तध्यान करवाता है। यानी यह सब अज्ञानता के कारण होता है, जबकि ज्ञान में कोई प्रकृति बाधक नहीं है। आत्मा को स्वभाव दशा में कोई प्रकृति बाधक नहीं है।