________________ 336 आप्तवाणी-७ जगत् वरीज़ रखने जैसा है ही नहीं। मुझे चोर मिलेगा, लुटेरा मिलेगा, ऐसा भी भय रखने जैसा नहीं है। यह तो, अगर पेपर में आए कि 'आज फलाने को गाड़ी में से उतारकर ज़ेवर लूट लिए, फलाने को मोटर में मारा और पैसे ले लिए।' तो अब सोना पहनना चाहिए या नहीं पहनना चाहिए? 'डोन्ट वरी!' करोड़ों रुपये के रत्न पहनकर घूमोगे तो भी आपको कोई छू नहीं सकेगा, ऐसा है यह जगत् और वह बिल्कुल करेक्ट है। यदि आपकी जोखिमदारी होगी तभी आपको छूएगा। इसलिए हम कहते हैं कि आपका ऊपरी कोई बाप भी नहीं है, इसलिए 'डोन्ट वरी!' निर्भय बन जाओ! प्रश्नकर्ता : एक व्यक्ति को हमने पाँच सौ रुपये दिए और वह रुपये वापस नहीं दे सका और दूसरा, हमने पाँच सौ रुपये का दान दिया, तो इन दोनों में क्या फर्क है? दादाश्री : दान दिया वह अलग चीज़ है। इसमें जो दान लेता है, वह कर्जदार नहीं बनता। आपके दान का बदला आपको दूसरी तरह से मिलता है। दान लेनेवाला व्यक्ति बदला नहीं चुकाता, जबकि उधारी में तो जिसके पास से आप रुपये माँगते हो, उसी की मारफत आपको दिलवाना पड़ता है। आखिर में फिर वह दहेज के रूप में भी रुपये देगा। अपने यहाँ नहीं कहते 'लड़का है गरीब परिवार का, लेकिन परिवार खानदानी है इसलिए उसे पचास हज़ार दहेज दो।' यह दहेज किसलिए देते हैं? यह तो, जिसने माँगा है उसी को देना पड़ता है। यानी ऐसा हिसाब है सारा! एक तो बेटी देते हैं और ऊपर से रुपये भी देते हैं। यानी यह तो सारा हिसाब चुक जाता है। पैसा वापस लेने में विवेक होना चाहिए प्रश्नकर्ता : किसी व्यक्ति से हमें रुपये वापस लेने हों, हमने उसे दिए हों, वे हमें उसके पास से वापस लेने हों और वह नहीं दे, तो उस समय हमें वापस लेने के लिए प्रयत्न करने