________________ [22] वसूली की परेशानी और ज्ञानी ने दुनिया को कैसा देखा? कुछ लोग कहते हैं कि, 'हमने किसी को पैसे उधार दिए हैं, वे सब डूब जाएँगे।' नहीं, यह जगत् बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। कुछ कहेंगे, 'पैसे दें तो डूबते ही नहीं।' दुनिया ऐसी भी नहीं है। हर एक के लिए दुनिया उसके हिसाब के मुताबिक ही होती है। आपका चोखा होगा तो कोई भी आपका नाम नहीं देगा, ऐसी है दुनिया। मन में ऐसा होता है कि, 'कोई चोर पकड़ लेगा तो क्या होगा?' ऐसा कुछ भी नहीं होगा और जो पकड़े जानेवाले हैं, उन्हें कोई छोड़ेगा नहीं, तब फिर घबराना क्यों? जो हिसाब होगा वह चुक जाएगा और हिसाब नहीं होगा तो कोई नाम भी नहीं देगा। अब इसमें निडर भी नहीं हो जाना है कि मेरा नाम कौन देगा? ऐसा नहीं बोलना चाहिए। वह तो किसी को ललकारने के बराबर है। बाकी, मन में घबराना मत। यह दुनिया घबराने जैसी नहीं है। अपनी तीन हज़ार रुपये की घड़ी हो और फोर्ट एरिया (मुबंई का एक बाज़ार) में गिर जाए। फोर्ट एरिया यानी कि महासागर कहलाता है। उस महासागर में गिरी हुई चीज़ वापस मिलती नहीं है। हम आशा भी नहीं रखते। लेकिन तीन दिन बाद अखबार में विज्ञापन आता है कि जिसकी घड़ी खो गई हो वह उसका प्रमाण देकर और इस विज्ञापन का खर्च देकर ले जाए। यानी यह जगत् ऐसा है, बिल्कुल न्याय स्वरूप! आपको रुपये नहीं देता वह