________________ कला, जान-बूझकर ठगे जाने की (21) 333 ...और जान-बूझकर ठगना, लाए अधोगति जान-बूझकर ठगे जाना वह प्रगति करवाता है और नासमझी से ठगे जाने में लाभ नहीं है, उसमें ठगनेवाला मार खाता है। इन आदिवासी को सेठ लोग क्या करते हैं? सेठ व्यापारी होता है, और वह आदिवासी के साथ बुद्धि का दुरुपयोग करता है या नहीं करता? खुद की अधिक बुद्धि से उस कम बुद्धिवाले को ठगता है! उसमें आदिवासी का तो जो होना था वह हो गया, लेकिन वह व्यापारी तो फिर से आदिवासी भी नहीं बनेगा, बल्कि जानवर गति मिलेगी। इस तरह लोग अपने आप को ही ठग रहे हैं न! और किसी को ठग ही नहीं सकते न! जगत् में, सिद्धांत स्वतंत्रता का इसलिए मैंने कहा है कि इस जगत् में कोई जीव किसी जीव में दख़ल कर सके, ऐसा है ही नहीं, बिल्कुल स्वतंत्र है, भगवान भी दख़ल नहीं कर सकते इतनी अधिक स्वतंत्रता है। भगवान क्यों दख़ल करेंगे? भगवान तो ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी हैं, उन्हें ऐसा कोई झंझट है? इतना समझ ले, तब भी बहुत हो गया कि कोई जीव किसी जीव में किंचित्मात्र दख़ल कर सके, यह जगत् ऐसा नहीं है। इस पर से यदि पूरा सिद्धांत समझ जाए तो स्वतंत्र हो जाएगा।