________________ कला, जान-बूझकर ठगे जाने की (21) 327 को पोषण न दें तो ये लोग हमें आगे जाने ही न दें! 'हमारा यह बाकी रह गया, हमारा यह बाकी रह गया' ऐसा कहकर रोकेंगे। आगे जाने देगा कोई? अरे, फादर-मदर भी नहीं जाने देते न! वे तो कहेंगे 'तूने मेरे लिए कुछ नहीं किया'। अरे, ऐसा बदला चाहते हो? बदला तो, अगर आसानी से मिल जाए तो अच्छी बात है, नहीं तो क्या माँ-बाप को बदला ढूँढना चाहिए? जो बदले की इच्छा रखें वे माँ-बाप कहलाते ही नहीं, वे तो किराएदार हैं! जान-बूझकर ठगे जानेवाले कम होते हैं न? प्रश्नकर्ता : नहीं होते। दादाश्री : तब उन्हें मोक्ष का मार्ग भी मिल आता है न! प्रश्नकर्ता : सामनेवाले को ठगने का चान्स देते हैं, क्या वह गलत नहीं है? दादाश्री : यह तो खुद के एडवान्समेन्ट के लिए है न! ठगने का चान्स उसके एडवान्समेन्ट के लिए है और हमें अपने एडवान्समेन्ट के लिए ठगे जाने के चान्स हैं। सामनेवाला अपनी पौदगलिक प्रगति कर रहा है और हम आत्मा की प्रगति करें तो उसमें गलत क्या है? उसमें अगर रुकावट डालें तो गलत कहलाएगा। हमें ठग गया लेकिन वापस उसे उससे भी बड़ा कोई मिल जाएगा, वह उसे मार-मारकर उसका कस निकाल देगा कि, 'अरे तू मुझे ठग रहा है?' ऐसा कहकर उसे मारेगा! शुरू से मैं जान-बूझकर ठगा जाता था। इसलिए लोग मुझे क्या कहते थे? कि 'इस ठगनेवाले को आदत पड़ जाएगी, उसकी जोखिमदारी किसके सिर पर आएगी? आप इन लोगों को छोड़ देते हो इसलिए लुटेरे पैदा होते हैं।' फिर मुझे उनसे खुलासा करना ही पड़ेगा न? और खुलासा तरीके से होना चाहिए। ऐसे कहीं मार-ठोककर खुलासा दिया जाता है? फिर मैंने कहा कि, 'आपकी बात सही है कि मेरे कारण कुछ लोग लुटेरों जैसे बने हैं।' वह